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हमेशा देश-सेवा और जनसेवा की भावनाओं के वशीभूत होकर कार्य किया है। विभिन्न संस्थाओं और सरकारी बोर्डों, समितियों में रहकर भी जनहित के कामों पर ध्यान दिया है। हरकदम पर पाया है कि भ्रष्टाचार इस देश को भीतर ही भीतर खोखला करता जा रहा है। स्वार्थ के सामने राष्ट्रहित गौण होता जा रहा है। इस टसि को लेकर कलम की ताकत की कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में सन 2003 में कलम कला पाक्षिक अखबार का प्रकाशन आरम्भ किया, जो अनवरत चल रहा है। अब ब्लॉगिंग के जरिए देश भर के नेक और ईमानदार लोगों की टीम बनाकर भ्रष्टाचार मिटाना चाहती हूं।

Monday, June 13, 2011

जैन विश्व भारती प्रकरण-2 तीन दिनों के आदेश की तीन साल भी सुध नहीं--- कोई भी जवाबदेह नहीं प्रशासन में पालिका ने क्यों मुंह मोड़ा करोड़ों की आय से


          लाडनूं (खुफिया कलम)।  राज्यपाल सचिवालय के निर्देशानुसार उपखंड अधिकारी ने तीन दिनों के अन्दर बिना स्वामित्व की कब्जे की समस्त भूमि, जिसके कृषि भूमि होते हुए भी अकृषि उपयोग किया जाना पाया गया था, के रूपान्तरण की कार्यवाही को तीन दिनों में किया जाकर अवगत कराने के आदेशों की पालना जैन विश्व भारती संस्थान के प्रबंधन द्वारा तीन साल बाद तक भी नहीं करवाई जाकर समूचे उपखंड प्रशासन का खुला मखौल उड़ाया गया है। ऐसा लगता है कि कभी राज्यपाल को, कभी मुख्यमंत्री को और कभी जिला कलेक्टर को किसी न किसी बहाने से अपनी संस्था व विश्वविद्यालय में बुलाकर स्थानीय प्रशासन पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है।  करोड़ों की कीमती भूमि पर कुण्डली मार कर बैठी संस्था और उसके पदाधिकारी सरकारी राशि की यह खुली चोरी करने में जुटे हैं।     उपखंड अधिकारी अजीत सिंह राजावत(तत्कालीन) ने दिनांक 16-10-2008 को राज्यपाल सचिवालय प्रकरण के तहत  एक पत्र क्रमांक: राज्यपाल सचिवालय/2008/1781 जारी करके प्रबंधक जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं को लिखा कि  आपके द्वारा कृषि भूमि का अकृषि उपयोग किया जाना बताया है। नायब तहसीलदार, लाडनूं की रिपोर्ट के अनुसार भी अन्य खातेदारान के नाम से दर्ज भूमि भी आपके कब्जे में है तथा इसका अकृषि उपयोग किया जा रहा है। अत: आपके कब्जे में बिना स्वामित्व दर्ज भूमि के स्वामित्व संबंधी कार्यवाही करें एवं प्रयोग में ली जा रही कृषि भूमि के रूपान्तरण की कार्यवाही तीन दिवस में कर अवगत करावें। इस पत्र की प्रति क्रमांक: सम/2008/1782 दिनांक 16.10.2008 तहसीलदार, लाडनूं को भेजकर उन्हें लिखा गया कि जैन विश्व भारती, लाडनूं के कब्जे में अवस्थित कृषि भूमि जिसका अकृषि उपयोग हो रहा है, की सूची व रूपान्तरण कार्यवाही शीघ्र करावें।  परन्तु अब करीब तीन साल होने को हैं लेकिन इस प्रकरण में नौ दिन चले अढाई कोस की कहावत भी फीकी पड़ गई। इसमें तो तीन सालों में तीन पग भी कोई नहीं चला, न तो प्रशासन और न जैन विश्व भारती संस्था के पदाधिकारी।
     इसके बाद उन्हीं उपखंड अधिकारी ने जिला कलेक्टर, नागौर को जैन विश्व भारती एवं जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय द्वारा मनचाहे ढंग से की जा रही नियमविरूद्ध गतिविधियों के क्रम में एक पत्र क्रमांक सीएम/रीडर/08/1623 दिनांक 4.11.2008 लिखा। यह पत्र जन अभाव अभियोग निराकरण विभाग के पत्रांक: प.21(25)आरपीजी/पब/बी/08 दिनांक: 24.10.2008 के प्रसंग में लिखा गया। यह पत्र उपखंड अधिकारी ने अपने पूर्वोक्त आदेश के 18 दिनों बाद जारी किया था, तब तक उनके आदेशों की कोई परवाह नहीं की गई थी।  राज्यपाल सचिवालय प्रकरण के क्रम में जारी इस पत्र के जवाब में उपखंड अधिकारी ने लिखा कि जैन विश्व भारती संस्थान की भूमि को प्राधिकृत अधिकारी तहसीलदार लाडनूं द्वारा धारा 90 (बी) की कार्यवाही करते हुए स्थानीय निकाय के नाम कर दी गई। संस्थान ने भूमि का रूपान्तरण नहीं करवाया है।  संस्थान ने कृषि भूमि का रूपांतरण नहीं करवाने के अलावा स्थानीय निकाय से कोई स्वीकृति भी प्राप्त नहीं की गई है। इस पत्र में उपखंड अधिकारी ने अपना पीछा इस प्रकरण से छुडवाने की चेष्टा की गई, उन्होंने अपनी चमड़ी बचाने के प्रयास में लिखा कि भूमि स्थानीय निकाय के नाम से दर्ज है, इसलिए रूपांतरण व निर्माण कार्य की स्वीकृति की कार्यवाही नगरपालिका मंडल, लाडनूं द्वारा की जानी है। इस कार्यालय स्तर से किसी प्रकार की कोई कार्यवाही अपेक्षित नहीं है। भूमि के रूपांतरण की कार्यवाही करवाने के लिए संस्थान को कार्यालय  द्वारा निर्देशित किया गया है।
    इस प्रकार यह पूर्णरूप से स्प्ष्ट है कि कोई भी अधिकारी इस प्रकरण में उचित कानूनी कार्यवाही करना नहीं चाहते। अधिशाषी अधिकारी नगरपालिका लाडनूं का कहना है कि उनके पास इस भूमि को उनके पक्ष में नामांतरण किए जाने की कोई सूचना तक उपलब्ध नहीं है। वे तो करोड़ों की सीधी आय को भी अनदेखा कर रहे हैं। क्या सभी केवल अपनी खाल ही बचा रहे हैं या खा-खा कर अपनी खाल मोटी करने में जुटे हुए हैं? राज्यपाल तक के आदेशों की धज्जियां उड़ जाना कोई मामूली बात नहीं कही जा सकती। आखिर कब बनेगा प्रशासन संवेदनशील, पारदर्शी व जवाबदेह?

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