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हमेशा देश-सेवा और जनसेवा की भावनाओं के वशीभूत होकर कार्य किया है। विभिन्न संस्थाओं और सरकारी बोर्डों, समितियों में रहकर भी जनहित के कामों पर ध्यान दिया है। हरकदम पर पाया है कि भ्रष्टाचार इस देश को भीतर ही भीतर खोखला करता जा रहा है। स्वार्थ के सामने राष्ट्रहित गौण होता जा रहा है। इस टसि को लेकर कलम की ताकत की कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में सन 2003 में कलम कला पाक्षिक अखबार का प्रकाशन आरम्भ किया, जो अनवरत चल रहा है। अब ब्लॉगिंग के जरिए देश भर के नेक और ईमानदार लोगों की टीम बनाकर भ्रष्टाचार मिटाना चाहती हूं।

Monday, June 13, 2011

मुश्किल से सुलझी बलात्कार की गुत्थीअसफल हुआ निर्दोष को मुल्जिम बनाने का प्रयास


    दिनांक 12.6.1995 को गांव गोठ, थाना सिंघाना के सरकारी अस्पताल में खून से लथपथ छ: वर्षीय बालिका को देखकर डाक्टर ने उसको आप्रेशन थियेटर में भिजवाते हुए थाना सिंघाना, जिला झुंझुनूं को सूचित किया। थानाधिकारी ने तुरन्त अस्पताल पहुंच कर डॉक्टर से सम्पर्क किया। डाक्टर ने बताया कि बालिका को उठाकर अस्पताल लाने वाली महिला ने सोचा था कि बालिका की आँत शौच जाते समय बाहर आ गई है लेकिन उसकी यानि एवं गुदा फट गई थी एवं खून बह रहा था। आप्रेशन कर दिया गया है। बालिका के चौदह टांके आए हैं एवं वह खतरे से बाहर है।
      सूचना पर थानाधिकारी ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया। घटनास्थल जंगल में था, जहां छोटी-छोटी झाडिय़ां थी। एक झाड़ी के पास संघर्ष के निशान थे। वहां पर खून पड़ा हुआ था। पास में ही आठ नम्बर की हवाई चप्पल की एक जोड़ी पड़ी हुई थी। निरीक्षण कर थानाधिकारी ने मौके पर पड़ी हवाई चप्पल एवं खून से सनी मिट्टी को जब्त किया। अस्पताल में डाक्टर ने बालिका द्वारा पहनी हुई खून से सनी फ्रॉक को भी सील किया।
       दो-तीन दिन तक मुलजिम का कोई पता नहीं चल पाया। इस बीच मामला पार्टी-पोलिटिक्स में जा पहुंचा एवं पार्टी विशेष ने दूसरी पार्टी विशेष के उसी गांव के रहने वाले अठावन वर्षीय मदनलाल चाहर को मुलजिम करार दिया। चूंकि मामला पाटीध््र पोलटिक्स से जुड़ गया था इसलिए मैंने तथाकथित मुल्जिम मदनलाल चाहर एवं बलात्कार की शिकार बालिका से पूछताछ करना उचित समझा। दोनों पक्षों को सिंघाना थाना बुलाकर पूछताछ की गई। मदनलाल चाहर से पूछताछ पर उसने स्वयं को बिलकुल निर्दोष बताया। उसने कहा कि पुलिस चाहे तो उसकी डाक्टरी जांच करवा सकती है। मेरे विचार से अठावन वर्षीय पुरूष छ: साल की अबोध बालिका के साथ इस तरह का जघन्य अपराध करने को शारीरिक व मानसिक तौर पर तैयार नहीं होगा। बालिका को प्यार से बहलाकर मदनलाल चाहर की पहचान कराई गई तो उसने मना करते हुए कहा कि वो तो छोरो हो। स्थानीय भाषा में वो तो छोरो हो का अर्थ है- वह तो लड़का था। क्योंकि बालिका ने मदनलाल चाहर की पहचान नहीं की थी और उसने किसी लड़के द्वारा वारदात करने की पुष्टि की थी इसलिए उसे पूछताछ के बाद घर जाने की अनुमति दी गई।
       मदनलाल चाहर को छोड़ देने के पश्चात पार्टी विशेष अधिक सक्रिय हो गई एवं उसकी गिरफ्तार की मांग को लेकर जिले के भिन्न-भिन्न कस्बों में मीटिंगें, बंद तथा रास्ते रोकने की कार्रवाइयां शुरू कर दी गई।  काफी समझाने के बाद भी वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि मदनलाल चाहर मुल्जिम नहीं है। मदनलाल चाहर का चरित्र जवानी में काफी संदिग्ध रहा था,  इसलिए उसे दोषी माना जा रहा  था। मदनलाल चाहर ने भी कहा कि हालांकि वह मुल्जिम नहीं है लेकिन मामला तूल पकड़ता जा रहा है, इसलिए उसे गिरफ्तार कर लिया जावे। मैंने भी इस केस को सुलझाने में स्वाभिमान का मुद्दा मानकर अधिक रूचि ली और बालिका का यह कहना कि वो तो छोरो हो, से गांव के लड़कों के ऊपर निगरानी शुरू करवा दी गई। गांव में सादा वर्दी में दो पुलिसकर्मी सूचना एकत्रित करने के लिए तैनात कर दिए गए।
       करीब दो सप्ताह तक किसी प्रकार का सुराग नहीं मिला। उधर पार्टी विशेष ने पुलिस अधीक्षक, झुंझुनूं  के कार्यालय के सामने क्रमिक अनशन शुरू कर दिया। पुलिस मुख्यालय से एवं विभिन्न संगठनों जैसे महिला संगठनों, अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों (क्योंकि  बालिका अनुसूचित जाति से सम्बंधित थी), महिला आयोग एवं अन्य संगठनों के प्रतिनिधि एवं पत्रकार मुल्जिम की शीघ्र गिरफ्तारी के लिए आने शुरू हो गए। गांव में सादा वस्त्र में छोड़े गए पुलिसकर्मियों को एक माह गुजरने के बावजूद भी कोई सुराग हाथ नहीं लगा।
     पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने क्रमिक अनशन के दौरान प्रतिदिन मीटिंगें की जाती, हो-हल्ला किया जाता एवं मदनलाल चाहर की हिरफ्तारी की मांग की जाती। एक सप्ताह और बीत गया लेकिन मुल्जिम का कोई सुराग नहीं लगा। मेरे दिमाग में रह-रह कर उस लड़की का एक ही वाक्य वो तो छोरो हो, घूम रहा था। मेरा मन बेगुनाह मदनलाल चाहर को गिरफ्तार करने के लिए नहीं मान रहा था। अत: मैंने पुलिस उप अधीक्षक श्री राजेन्द्रसिंह राठौड़ को  बुलाकर बारीकी से समझाया कि गांव के पन्द्रह से पच्चीस वर्ष के सभी लड़कों की दो दिन में सूची तैयार कर ली जावे तथा सभी की गतिविधियों के बारे में जैसे- किसी को तम्बाकू या शराब पीने की या कोई अन्य लत तो नहीं? किसी को ज्यादा पैसा खर्च करने की आदत तो नहीं? पिताजी क्या काम करते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति कैसी है? आदि सूचनाएं एकत्रित कर मुझसे विचार-विमर्श करें।        गांव के अस्सी-पिच्यासी लड़कों का ब्यौरा लेकर उप पुलिस अधीक्षक श्री राजेन्द्र सिंह राठौड़  मुझसे विचार-विमर्श करने पहुंचे। हमने प्रतयेक लड़के के बारे में विचार विमर्श कर चालीस लड़कों को पूछताछ के लिए चयनित किया और रात्रि करीब सात से दस बजे तक रोजाना दस लड़कों को बुलाकर पूछताछ करने के लिए तय किया। प्रतिदिन गांव से चिह्नित दस लड़के थाना सिंघाना में पूछताछ के लिए बुलाए जाते। गहनता से विस्तृत पूछताछ कर रिपोर्ट तैयार की जाती। चार दिन तक यह क्रम चलता रहा।गहन पूछताछ के बाद भी सफलता हासिल नहीं हो पाई। लेकिन विचार-विमर्श के बाद चालीस लड़कों में से अत्यन्त संदिग्ध चरित्र वाले दस लड़कों को पुन: पूछताछ के लिए थाना खेतड़ी बुलाया गया। सभी लड़कों को पुलिस उप अधीक्षक ने बारी-बारी से अपने पास बुलाकर कहा कि पुलिस को मुल्जिम का पता चल चुका है वह स्वयं ही पूरी कहानी बतावे तो मुकदमे में कुछ रियायत हो सकती है, अन्यथा पुलिस को अपनी कार्रवाई करनी ही पड़ेगी। इस बात पर बीस वर्षीय कमलेश पुत्र पितराम ने हाथ जोड़कर गलती की माफी चाही और सारा घटनाक्रम बताया। पुलिस उप अधीक्षक ने तुरन्त मुझे सूचित किया तो मैं भी थाना खेतड़ी पहुंचा और मुल्जिम से पूछताछ की।
      कमलेश ने बताया कि औरतें व बच्चे शादी में मंदिर पूजा पर जा रहे थे। पीडि़त बच्ची पीछे रह गई तो उसने बच्ची को टॉफी तथा पैसे का लालच देकर अपने साथ ले लिया और उसे जंगल में झाडिय़ों के पीछे ले गया। उसके साथ बलात्कार करने पर लड़की जोर-जोर से रोने लगी। लड़की की आवाज सुनकर उधर से गुजर रही एक महिला ने उस तरफ  देखा तो कमलेश झाडिय़ों के पीछे छिपता-छिपता भाग गया और वह औरत उस लड़की को उठाकर उनके घर ले गई। बाद में उसको हस्पताल पहुंचाया गया।  मौके पर पड़ी चप्पलों की जब मुल्जिम से पहचान करवाई गई तो उसने खुद की होने की पुष्टि की। उसके पैरों में पहनाकर देखा गया तो वह उसी के नाप की मिली। यह पूछने पर कि घटना के समय कौन से कपड़े पहने हुए थे, जिस पर उसने वे कपड़े घर पर पड़े होना और उन्हें धे देना बताया। कमलेश की सूचना पर उसके घर से उसका कमीज तथा अंडरवीयर लिया गया। उन पर धुले हुए खून के धब्बे पाए गए। अंडरवीयर तथा कमीज को सील किया गया और डाक्टर द्वारा जब्त किया गया बालिका के खून से सना फ्राक एवं मौके से जब्त की गई खून सनी मिट्टी, बालिका तथा मुल्जिम कमलेश के खून के नमूने मिलान करने हेतु विधि विज्ञान प्रयोगशाला, जयपुर भेजे गए।
     डेढ माह बाद मुल्जिम की सफलता पूर्वक तलाश व गिरफ्तारी से हम प्रसन्न थे लेकिन  पुलिस कार्यालय के सामने धरना दे रहे लोग अभी भी मदनलाल चाहर की गिरफ्तारी तथा कमलेश को बेगुनाह बताकर उसकी रिहाई की मांग कर रहे थे। कमलेश की जमानत के लिए सत्र न्यायालय में याचिका लगी तो वहां उसकी जमानत अस्वीकार हो गई। बाद में माननीय राजस्थान उच्च  न्यायालय, जयपुर में कमलेश को बेगुनाह बताते हुए न्याय की गुहार की गई। उसकी जमानत माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत हो गई। धरना यथावत जारी रहा।
      मैंने विधि विज्ञान प्रयोगशाला, जयपुर से जांच रिपोर्ट तत्काल भिजवाने का अनुरोध किया। जांच रिपोर्ट प्राप्त होने पर हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। कमलेश का ब्लड ग्रुप ए पोजीटिव था एवं बालिका , उसकी खून में सनी हुई फ्राक, मौके से उठाई गई खून से सनी मिट्टी एवं मुल्जिम के कमीज तथा अंडरवीयर पर खून के निशान ब्लड ग्रुप बी पोजीटिव थे, जो आपस में मिलान खा रहे थे। इस बात का पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने धरना दे रहे पार्टी विशेष के लोगों को पता चला तो उनका जोश ठंडा पड़ गया। पत्रावली क्राईम ब्रांच, जयपुर में भेजने पर धरना समाप्त हुआ। क्राईम ब्रांच ने भी जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा की गई जांच को सही मानकर पत्रावली वापस लौटा दी। आलेख लिखे जाने तक मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
     सम्पूर्ण विवरण से आप समझ गए होंगे कि किस प्रकार एवं किन परिस्थितियों में पुलिस ने मुल्जिम का पता लगाकर केस को सफलतापूर्वक खोला।

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