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हमेशा देश-सेवा और जनसेवा की भावनाओं के वशीभूत होकर कार्य किया है। विभिन्न संस्थाओं और सरकारी बोर्डों, समितियों में रहकर भी जनहित के कामों पर ध्यान दिया है। हरकदम पर पाया है कि भ्रष्टाचार इस देश को भीतर ही भीतर खोखला करता जा रहा है। स्वार्थ के सामने राष्ट्रहित गौण होता जा रहा है। इस टसि को लेकर कलम की ताकत की कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में सन 2003 में कलम कला पाक्षिक अखबार का प्रकाशन आरम्भ किया, जो अनवरत चल रहा है। अब ब्लॉगिंग के जरिए देश भर के नेक और ईमानदार लोगों की टीम बनाकर भ्रष्टाचार मिटाना चाहती हूं।

Monday, June 13, 2011

नेहरू पार्क पर जागी नगरपालिका------- तहसीलदार व जैन विश्व भारती से मांगी जानकारी



     लाडनूं (कलम कला न्यूज)।   अपनी सम्पति के प्रति बरसों तक उदासीन रहने के बाद अब कहीं जाकर नगरपालिका की आंखें खुली है। नगरपालिका द्वारा देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा की स्थापना अपने खर्च से  करके उसका भव्य अनावरण समारोह भी पालिका खर्च से किया गया व मूर्ति के आस-पास उद्यान लगाने का कार्य किया गया और उसके लिए ठिकाना लाडनूं की ओर से वहां मौजूद राणावत जी के कुएं का समर्पण नगरपालिका को  किया गया, जिसके पानी से वहां शानदार पार्क विकसित किया गया था। परन्तु वह कई मोड़ देखने के बाद वहां स्थापित की गई जैन विश्व भारती संस्था के कब्जे में चला गया, अब उसे मुक्त करवाने की कार्यवाही के प्रति नगरपालिका जागृत हुई है।        नगरपालिका के अधिशाषी अधिकारी जस्साराम गोदारा ने  नगरपालिका की सम्पति नेहरू पार्क को अतिक्रमण से मुक्त करवाने के क्रम में नेहरू पार्क के बारे में तहसीलदार लाडनूं व जैन विश्व भारती लाडनूं से जानकारी मांगी है। गोदारा ने जैन विश्व भारती के व्यवस्थापक को पत्र क्रमांक- 238 दिनांक: 16-05-2011 देकर लिखा है कि नेहरू पार्क सम्पति जैन विश्व भारती परिसर के भीतर अवस्थित है, उसके स्वामित्व के सम्बंध में दस्तावेजों की प्रतियां उपलब्ध करावें, रिकार्ड के अनुसार नेहरू पार्क की लम्बाई-चौड़ाई व क्षेत्रफल से अवगत करावें, रिकॉर्ड के अलावा वास्तविक क्षेत्रफल नेहरू पार्क का कितना मौजूद है,  अगर नेहरू पार्क सम्पति का सरकार या पालिका के साथ कोई लीज करार हुआ है, तो उसकी प्रतिलिपि दी जावे, नेहरू पार्क तक पहुंचने के सार्वजनिक आम रास्ते कहां-कहां स्थित हैं, क्या नेहरू पार्क के लिए प्रवेशाधिकार आरक्षित किया गया है, उसकी जानकारी आदि समस्त जानकारी के अलावा गोदारा ने जैन विश्व भारती संस्थान का सम्पूर्ण परिसर कुल कितनी भूमि उपर अवस्थित है उसके समस्त दस्तावेजों के साथ जानकारी सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए शीघ्र उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए हैं। 
       उन्होंने अपने पत्र क्रमांक 239 दिनांक 16-05-2011 तहसीलदार लाडनूं को जारी किया है, जिसमें उन्होंने राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार नेहरू पार्क का क्षेत्रफल कितना है? नेहरू पार्क सम्पति के स्वामित्व के सम्बंध में समस्त आवश्यक जानकारी, नेहरू पार्क सम्पति का अगर लीज करार हुआ हो तो उसकी प्रतिलिपि दी जाने के लिए मांग करते हुए जैन विश्व भारती  व जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय का सम्पूर्ण परिसर कुल कितनी भूमि पर अवस्थित है, की जानकारी मय आवश्यक रिकार्ड के मांगी है।

जैन विश्व भारती प्रकरण-2 तीन दिनों के आदेश की तीन साल भी सुध नहीं--- कोई भी जवाबदेह नहीं प्रशासन में पालिका ने क्यों मुंह मोड़ा करोड़ों की आय से


          लाडनूं (खुफिया कलम)।  राज्यपाल सचिवालय के निर्देशानुसार उपखंड अधिकारी ने तीन दिनों के अन्दर बिना स्वामित्व की कब्जे की समस्त भूमि, जिसके कृषि भूमि होते हुए भी अकृषि उपयोग किया जाना पाया गया था, के रूपान्तरण की कार्यवाही को तीन दिनों में किया जाकर अवगत कराने के आदेशों की पालना जैन विश्व भारती संस्थान के प्रबंधन द्वारा तीन साल बाद तक भी नहीं करवाई जाकर समूचे उपखंड प्रशासन का खुला मखौल उड़ाया गया है। ऐसा लगता है कि कभी राज्यपाल को, कभी मुख्यमंत्री को और कभी जिला कलेक्टर को किसी न किसी बहाने से अपनी संस्था व विश्वविद्यालय में बुलाकर स्थानीय प्रशासन पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है।  करोड़ों की कीमती भूमि पर कुण्डली मार कर बैठी संस्था और उसके पदाधिकारी सरकारी राशि की यह खुली चोरी करने में जुटे हैं।     उपखंड अधिकारी अजीत सिंह राजावत(तत्कालीन) ने दिनांक 16-10-2008 को राज्यपाल सचिवालय प्रकरण के तहत  एक पत्र क्रमांक: राज्यपाल सचिवालय/2008/1781 जारी करके प्रबंधक जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं को लिखा कि  आपके द्वारा कृषि भूमि का अकृषि उपयोग किया जाना बताया है। नायब तहसीलदार, लाडनूं की रिपोर्ट के अनुसार भी अन्य खातेदारान के नाम से दर्ज भूमि भी आपके कब्जे में है तथा इसका अकृषि उपयोग किया जा रहा है। अत: आपके कब्जे में बिना स्वामित्व दर्ज भूमि के स्वामित्व संबंधी कार्यवाही करें एवं प्रयोग में ली जा रही कृषि भूमि के रूपान्तरण की कार्यवाही तीन दिवस में कर अवगत करावें। इस पत्र की प्रति क्रमांक: सम/2008/1782 दिनांक 16.10.2008 तहसीलदार, लाडनूं को भेजकर उन्हें लिखा गया कि जैन विश्व भारती, लाडनूं के कब्जे में अवस्थित कृषि भूमि जिसका अकृषि उपयोग हो रहा है, की सूची व रूपान्तरण कार्यवाही शीघ्र करावें।  परन्तु अब करीब तीन साल होने को हैं लेकिन इस प्रकरण में नौ दिन चले अढाई कोस की कहावत भी फीकी पड़ गई। इसमें तो तीन सालों में तीन पग भी कोई नहीं चला, न तो प्रशासन और न जैन विश्व भारती संस्था के पदाधिकारी।
     इसके बाद उन्हीं उपखंड अधिकारी ने जिला कलेक्टर, नागौर को जैन विश्व भारती एवं जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय द्वारा मनचाहे ढंग से की जा रही नियमविरूद्ध गतिविधियों के क्रम में एक पत्र क्रमांक सीएम/रीडर/08/1623 दिनांक 4.11.2008 लिखा। यह पत्र जन अभाव अभियोग निराकरण विभाग के पत्रांक: प.21(25)आरपीजी/पब/बी/08 दिनांक: 24.10.2008 के प्रसंग में लिखा गया। यह पत्र उपखंड अधिकारी ने अपने पूर्वोक्त आदेश के 18 दिनों बाद जारी किया था, तब तक उनके आदेशों की कोई परवाह नहीं की गई थी।  राज्यपाल सचिवालय प्रकरण के क्रम में जारी इस पत्र के जवाब में उपखंड अधिकारी ने लिखा कि जैन विश्व भारती संस्थान की भूमि को प्राधिकृत अधिकारी तहसीलदार लाडनूं द्वारा धारा 90 (बी) की कार्यवाही करते हुए स्थानीय निकाय के नाम कर दी गई। संस्थान ने भूमि का रूपान्तरण नहीं करवाया है।  संस्थान ने कृषि भूमि का रूपांतरण नहीं करवाने के अलावा स्थानीय निकाय से कोई स्वीकृति भी प्राप्त नहीं की गई है। इस पत्र में उपखंड अधिकारी ने अपना पीछा इस प्रकरण से छुडवाने की चेष्टा की गई, उन्होंने अपनी चमड़ी बचाने के प्रयास में लिखा कि भूमि स्थानीय निकाय के नाम से दर्ज है, इसलिए रूपांतरण व निर्माण कार्य की स्वीकृति की कार्यवाही नगरपालिका मंडल, लाडनूं द्वारा की जानी है। इस कार्यालय स्तर से किसी प्रकार की कोई कार्यवाही अपेक्षित नहीं है। भूमि के रूपांतरण की कार्यवाही करवाने के लिए संस्थान को कार्यालय  द्वारा निर्देशित किया गया है।
    इस प्रकार यह पूर्णरूप से स्प्ष्ट है कि कोई भी अधिकारी इस प्रकरण में उचित कानूनी कार्यवाही करना नहीं चाहते। अधिशाषी अधिकारी नगरपालिका लाडनूं का कहना है कि उनके पास इस भूमि को उनके पक्ष में नामांतरण किए जाने की कोई सूचना तक उपलब्ध नहीं है। वे तो करोड़ों की सीधी आय को भी अनदेखा कर रहे हैं। क्या सभी केवल अपनी खाल ही बचा रहे हैं या खा-खा कर अपनी खाल मोटी करने में जुटे हुए हैं? राज्यपाल तक के आदेशों की धज्जियां उड़ जाना कोई मामूली बात नहीं कही जा सकती। आखिर कब बनेगा प्रशासन संवेदनशील, पारदर्शी व जवाबदेह?

मुश्किल से सुलझी बलात्कार की गुत्थीअसफल हुआ निर्दोष को मुल्जिम बनाने का प्रयास


    दिनांक 12.6.1995 को गांव गोठ, थाना सिंघाना के सरकारी अस्पताल में खून से लथपथ छ: वर्षीय बालिका को देखकर डाक्टर ने उसको आप्रेशन थियेटर में भिजवाते हुए थाना सिंघाना, जिला झुंझुनूं को सूचित किया। थानाधिकारी ने तुरन्त अस्पताल पहुंच कर डॉक्टर से सम्पर्क किया। डाक्टर ने बताया कि बालिका को उठाकर अस्पताल लाने वाली महिला ने सोचा था कि बालिका की आँत शौच जाते समय बाहर आ गई है लेकिन उसकी यानि एवं गुदा फट गई थी एवं खून बह रहा था। आप्रेशन कर दिया गया है। बालिका के चौदह टांके आए हैं एवं वह खतरे से बाहर है।
      सूचना पर थानाधिकारी ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया। घटनास्थल जंगल में था, जहां छोटी-छोटी झाडिय़ां थी। एक झाड़ी के पास संघर्ष के निशान थे। वहां पर खून पड़ा हुआ था। पास में ही आठ नम्बर की हवाई चप्पल की एक जोड़ी पड़ी हुई थी। निरीक्षण कर थानाधिकारी ने मौके पर पड़ी हवाई चप्पल एवं खून से सनी मिट्टी को जब्त किया। अस्पताल में डाक्टर ने बालिका द्वारा पहनी हुई खून से सनी फ्रॉक को भी सील किया।
       दो-तीन दिन तक मुलजिम का कोई पता नहीं चल पाया। इस बीच मामला पार्टी-पोलिटिक्स में जा पहुंचा एवं पार्टी विशेष ने दूसरी पार्टी विशेष के उसी गांव के रहने वाले अठावन वर्षीय मदनलाल चाहर को मुलजिम करार दिया। चूंकि मामला पाटीध््र पोलटिक्स से जुड़ गया था इसलिए मैंने तथाकथित मुल्जिम मदनलाल चाहर एवं बलात्कार की शिकार बालिका से पूछताछ करना उचित समझा। दोनों पक्षों को सिंघाना थाना बुलाकर पूछताछ की गई। मदनलाल चाहर से पूछताछ पर उसने स्वयं को बिलकुल निर्दोष बताया। उसने कहा कि पुलिस चाहे तो उसकी डाक्टरी जांच करवा सकती है। मेरे विचार से अठावन वर्षीय पुरूष छ: साल की अबोध बालिका के साथ इस तरह का जघन्य अपराध करने को शारीरिक व मानसिक तौर पर तैयार नहीं होगा। बालिका को प्यार से बहलाकर मदनलाल चाहर की पहचान कराई गई तो उसने मना करते हुए कहा कि वो तो छोरो हो। स्थानीय भाषा में वो तो छोरो हो का अर्थ है- वह तो लड़का था। क्योंकि बालिका ने मदनलाल चाहर की पहचान नहीं की थी और उसने किसी लड़के द्वारा वारदात करने की पुष्टि की थी इसलिए उसे पूछताछ के बाद घर जाने की अनुमति दी गई।
       मदनलाल चाहर को छोड़ देने के पश्चात पार्टी विशेष अधिक सक्रिय हो गई एवं उसकी गिरफ्तार की मांग को लेकर जिले के भिन्न-भिन्न कस्बों में मीटिंगें, बंद तथा रास्ते रोकने की कार्रवाइयां शुरू कर दी गई।  काफी समझाने के बाद भी वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि मदनलाल चाहर मुल्जिम नहीं है। मदनलाल चाहर का चरित्र जवानी में काफी संदिग्ध रहा था,  इसलिए उसे दोषी माना जा रहा  था। मदनलाल चाहर ने भी कहा कि हालांकि वह मुल्जिम नहीं है लेकिन मामला तूल पकड़ता जा रहा है, इसलिए उसे गिरफ्तार कर लिया जावे। मैंने भी इस केस को सुलझाने में स्वाभिमान का मुद्दा मानकर अधिक रूचि ली और बालिका का यह कहना कि वो तो छोरो हो, से गांव के लड़कों के ऊपर निगरानी शुरू करवा दी गई। गांव में सादा वर्दी में दो पुलिसकर्मी सूचना एकत्रित करने के लिए तैनात कर दिए गए।
       करीब दो सप्ताह तक किसी प्रकार का सुराग नहीं मिला। उधर पार्टी विशेष ने पुलिस अधीक्षक, झुंझुनूं  के कार्यालय के सामने क्रमिक अनशन शुरू कर दिया। पुलिस मुख्यालय से एवं विभिन्न संगठनों जैसे महिला संगठनों, अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों (क्योंकि  बालिका अनुसूचित जाति से सम्बंधित थी), महिला आयोग एवं अन्य संगठनों के प्रतिनिधि एवं पत्रकार मुल्जिम की शीघ्र गिरफ्तारी के लिए आने शुरू हो गए। गांव में सादा वस्त्र में छोड़े गए पुलिसकर्मियों को एक माह गुजरने के बावजूद भी कोई सुराग हाथ नहीं लगा।
     पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने क्रमिक अनशन के दौरान प्रतिदिन मीटिंगें की जाती, हो-हल्ला किया जाता एवं मदनलाल चाहर की हिरफ्तारी की मांग की जाती। एक सप्ताह और बीत गया लेकिन मुल्जिम का कोई सुराग नहीं लगा। मेरे दिमाग में रह-रह कर उस लड़की का एक ही वाक्य वो तो छोरो हो, घूम रहा था। मेरा मन बेगुनाह मदनलाल चाहर को गिरफ्तार करने के लिए नहीं मान रहा था। अत: मैंने पुलिस उप अधीक्षक श्री राजेन्द्रसिंह राठौड़ को  बुलाकर बारीकी से समझाया कि गांव के पन्द्रह से पच्चीस वर्ष के सभी लड़कों की दो दिन में सूची तैयार कर ली जावे तथा सभी की गतिविधियों के बारे में जैसे- किसी को तम्बाकू या शराब पीने की या कोई अन्य लत तो नहीं? किसी को ज्यादा पैसा खर्च करने की आदत तो नहीं? पिताजी क्या काम करते हैं और उनकी आर्थिक स्थिति कैसी है? आदि सूचनाएं एकत्रित कर मुझसे विचार-विमर्श करें।        गांव के अस्सी-पिच्यासी लड़कों का ब्यौरा लेकर उप पुलिस अधीक्षक श्री राजेन्द्र सिंह राठौड़  मुझसे विचार-विमर्श करने पहुंचे। हमने प्रतयेक लड़के के बारे में विचार विमर्श कर चालीस लड़कों को पूछताछ के लिए चयनित किया और रात्रि करीब सात से दस बजे तक रोजाना दस लड़कों को बुलाकर पूछताछ करने के लिए तय किया। प्रतिदिन गांव से चिह्नित दस लड़के थाना सिंघाना में पूछताछ के लिए बुलाए जाते। गहनता से विस्तृत पूछताछ कर रिपोर्ट तैयार की जाती। चार दिन तक यह क्रम चलता रहा।गहन पूछताछ के बाद भी सफलता हासिल नहीं हो पाई। लेकिन विचार-विमर्श के बाद चालीस लड़कों में से अत्यन्त संदिग्ध चरित्र वाले दस लड़कों को पुन: पूछताछ के लिए थाना खेतड़ी बुलाया गया। सभी लड़कों को पुलिस उप अधीक्षक ने बारी-बारी से अपने पास बुलाकर कहा कि पुलिस को मुल्जिम का पता चल चुका है वह स्वयं ही पूरी कहानी बतावे तो मुकदमे में कुछ रियायत हो सकती है, अन्यथा पुलिस को अपनी कार्रवाई करनी ही पड़ेगी। इस बात पर बीस वर्षीय कमलेश पुत्र पितराम ने हाथ जोड़कर गलती की माफी चाही और सारा घटनाक्रम बताया। पुलिस उप अधीक्षक ने तुरन्त मुझे सूचित किया तो मैं भी थाना खेतड़ी पहुंचा और मुल्जिम से पूछताछ की।
      कमलेश ने बताया कि औरतें व बच्चे शादी में मंदिर पूजा पर जा रहे थे। पीडि़त बच्ची पीछे रह गई तो उसने बच्ची को टॉफी तथा पैसे का लालच देकर अपने साथ ले लिया और उसे जंगल में झाडिय़ों के पीछे ले गया। उसके साथ बलात्कार करने पर लड़की जोर-जोर से रोने लगी। लड़की की आवाज सुनकर उधर से गुजर रही एक महिला ने उस तरफ  देखा तो कमलेश झाडिय़ों के पीछे छिपता-छिपता भाग गया और वह औरत उस लड़की को उठाकर उनके घर ले गई। बाद में उसको हस्पताल पहुंचाया गया।  मौके पर पड़ी चप्पलों की जब मुल्जिम से पहचान करवाई गई तो उसने खुद की होने की पुष्टि की। उसके पैरों में पहनाकर देखा गया तो वह उसी के नाप की मिली। यह पूछने पर कि घटना के समय कौन से कपड़े पहने हुए थे, जिस पर उसने वे कपड़े घर पर पड़े होना और उन्हें धे देना बताया। कमलेश की सूचना पर उसके घर से उसका कमीज तथा अंडरवीयर लिया गया। उन पर धुले हुए खून के धब्बे पाए गए। अंडरवीयर तथा कमीज को सील किया गया और डाक्टर द्वारा जब्त किया गया बालिका के खून से सना फ्राक एवं मौके से जब्त की गई खून सनी मिट्टी, बालिका तथा मुल्जिम कमलेश के खून के नमूने मिलान करने हेतु विधि विज्ञान प्रयोगशाला, जयपुर भेजे गए।
     डेढ माह बाद मुल्जिम की सफलता पूर्वक तलाश व गिरफ्तारी से हम प्रसन्न थे लेकिन  पुलिस कार्यालय के सामने धरना दे रहे लोग अभी भी मदनलाल चाहर की गिरफ्तारी तथा कमलेश को बेगुनाह बताकर उसकी रिहाई की मांग कर रहे थे। कमलेश की जमानत के लिए सत्र न्यायालय में याचिका लगी तो वहां उसकी जमानत अस्वीकार हो गई। बाद में माननीय राजस्थान उच्च  न्यायालय, जयपुर में कमलेश को बेगुनाह बताते हुए न्याय की गुहार की गई। उसकी जमानत माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत हो गई। धरना यथावत जारी रहा।
      मैंने विधि विज्ञान प्रयोगशाला, जयपुर से जांच रिपोर्ट तत्काल भिजवाने का अनुरोध किया। जांच रिपोर्ट प्राप्त होने पर हमारी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। कमलेश का ब्लड ग्रुप ए पोजीटिव था एवं बालिका , उसकी खून में सनी हुई फ्राक, मौके से उठाई गई खून से सनी मिट्टी एवं मुल्जिम के कमीज तथा अंडरवीयर पर खून के निशान ब्लड ग्रुप बी पोजीटिव थे, जो आपस में मिलान खा रहे थे। इस बात का पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने धरना दे रहे पार्टी विशेष के लोगों को पता चला तो उनका जोश ठंडा पड़ गया। पत्रावली क्राईम ब्रांच, जयपुर में भेजने पर धरना समाप्त हुआ। क्राईम ब्रांच ने भी जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा की गई जांच को सही मानकर पत्रावली वापस लौटा दी। आलेख लिखे जाने तक मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
     सम्पूर्ण विवरण से आप समझ गए होंगे कि किस प्रकार एवं किन परिस्थितियों में पुलिस ने मुल्जिम का पता लगाकर केस को सफलतापूर्वक खोला।

सैंकड़ों बीघा जमीन खुर्दबुर्द-----नगरपालिका की सवा सौ बीघा भूमि पर अवैध निर्माण: रूपान्तरण, नियमन व निर्माण इजाजत के करोड़ों हड़पे: प्रशासन लिप्त लीपापोती में? जैन विश्व भारती पर उठे सवाल


  लाडनूं (खुफिया कलम)। लाडनूं शहर बुरी तरह भू माफियाओं के चंगुल में फंस चुका है। कीमती जमीनों को हथियाने के लिए तरह-तरह की चालों को अख्तियार करना और गिरोहबद्ध होकर अपनी कार्रगुजारियों को अंजाम देना, ये भू माफिया भलीभंति जानते हैं। मजे की बात तो यह है कि क्षेत्र का समूचा प्रशासन भी इनके कारनामों में कहीं न कहीं भागीदार अवश्य हैं। तालाबों, पायतनों, चारागाहों और सरकारी गैरमुमकिन अगोर की भूमियों पर अंधाधुंध कब्जे हो रहे हैं, मगर कोई भी बोलने और सुनने वाला नहीं है। और तो और जब यह जानकारी सामने आई कि सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह आदि बातों का ढोल पीटने वाले भी इन गलत कुकर्मों से वंचित नहीं है, तो लोगों को घोर आश्चर्य होना स्वाभाविक है।
     राहुल जैन नामक एक किसी नागरिक ने इस सम्बंध में आवाज उठाई, जिससे राज्यपाल से लेकर जिला प्रशासन तक सक्रिय हुए और कार्रवाई शुरू हुई, परन्तु यह अति दु:खद पहलु है कि स्थानीय प्रशासन पूरी तरह इस मामले में लीपापोती करने में जुटा है।
     महेश सांखला नामक एक समाजसेवी व्यक्ति ने जब मुखर होकर इस सम्बंध में सूचना के अधिकार का सहारा लिया तो उसे पूरी तरह भ्रमित करने वाली और गलत जानकारियां दी गई और कुछ मामलों में तो कोई जानकारी देने से इंकार तक अवैधानिक तौर पर कर दिया गया।
राज्यपाल सचिवालय से कार्रवाईशुरू हुई 
     जिला कलेक्टर नागौर ने उपखंड अधिकारी लाडनूं को एक पत्र सं. 2412 दिनांक 16.9.2008 भेजकर लिखा जैन विश्व भारती एवं जैन विश्व भारती मान्य विश्व विद्यालय द्वारा मनचाहे ढंग से की जा रही नियम विरूद्ध गतिविधियों पर एक सप्ताह में रिपोर्ट मांगी। इस पत्र में बताया गया कि राज्यपाल सचिवालय से प्राप्त शिकायत के आधार पर एक टीम गठित कर वस्तुस्थिति की जांच बिन्दुवार कर स्वयं के निरीक्षण में तैयार करवाकर शिकायत के बिन्दुवार रिपोर्ट एक सप्ताह में भिजवायी जावे। यह आदेश कलेक्टर ने शासन उप सचिव जन अभाव अभियोग निराकरण विभाग के पत्र क्र. प. 2(25) आरपीजी/पब /बी /2008 दिनांक 15.9.2008 एवं दूरभाष के निर्देशों के आधार पर दिए।
13 खसरों की सवा सौ बीघा जमीन नगरपालिका की
    इसके जवाब में तत्कालीन उपखंड अधिकारी अजीत सिंह राजावत ने  अपने पत्र सं. सीएम/रीडर/08/42 दिनांक 03.10.2008 में बताया है कि जैन विश्व भारती के भीतर खसरा नं. 497 रकबा 19 बीघा 05 बिस्वा, ख.नं. 507 रकबा 5 बीघा 6 बिस्वा, ख.नं. 510 रकबा 6 बीघा 09 बिस्वा,  ख.नं. 511 रकबा 6 बीघा 14 बिस्वा,  ख.नं. 512 रकबा 3 बीघा 01 बिस्वा,  ख.नं. 513 रकबा 14 बिस्वा, ख.नं. 514 रकबा 13 बीघा 04 बिस्वा, ख.नं. 515 रकबा 5 बीघा 19 बिस्वा,  ख.नं. 516 रकबा 9 बीघा 9 बिस्वा,  ख.नं. 517 रकबा 19 बीघा 06 बिस्वा, ख.नं. 509 रकबा 8 बीघा 12 बिस्वा, ख.नं. 495/2247 रकबा 13 बीघा 13 बिस्वा- इन सभी कुल 12 खसराओं की करब सवा सौ बीघा भूमि राजस्व रेकर्ड के मुताबिक नगरपालिका लाडनूं के नाम से नामांकन सं. 2220 दिनांक 30.07.2001 द्वारा अंकित है। इसके अलावा खसरा नं. 504 रकबा 13 बीघा 10 बिस्वा की आधी भूमि नगरपालिका और आधी भूमि जैन विश्व भारती के नाम से  दर्ज है और जैन विश्व भारती मान्य विश्व विद्यालय के नाम से मात्र खसरा नं. 508 रकबा 13 बिस्वा भूमि ही दर्ज है।
अनेक अन्य खातेदारों की भूमि पर भी कब्जा
    इन संस्थाओं ने कुछ अन्य खातेदारों की भूमि खसरा नं. 496, 506, 507, व 508  पर भी अवैध कब्जा कर रखा है। अलग-अलग खसराओं पर निर्मित किए गए भवनों का वर्णन भी  इस रिपोर्ट में दिया गया है। इस भूमि के नगरपालिका लाडनूं में निहित होने, संस्थान द्वारा भूमि का रूपांतरण नहीं कराए जाने, निर्माण कार्यों के लिए स्थानीय निकाय से कोई स्वीकृति नहीं ली जाने की जानकारी देते हुए इसके लिए स्थानीय नगरपालिका को कार्यवाही के लिए उत्तरदायी ठहराया था।

नेहरू पार्क को अतिक्रमण से मुक्त करवाने की मांग


लाडनूं (कलम कला न्यूज)। स्थानीय  सामाजिक कार्यकर्ता महेशप्रकाश सांखला ने तहसीलदार सत्यनारायण शर्मा व अधिशाषी अधिकारी जस्साराम गोदारा को पत्र लिखकर जिला कलेक्टर के आदेशों की पालना करने तथा अपनी कार्यवाही पूर्ण कर शीघ्र रिपोर्ट भिजवाने बाबत मांग की है। सांखला ने अपने पत्र में लिखा है कि राजकीय भूमि व सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण कर अनधिकृत रूप से निर्मित धार्मिक पूजास्थलों के सम्बंध में राज्य सरकार द्वारा जारी नीति के अनुसार तुरन्त कार्यवाही की जावे। इस सम्बंध में बताया गया है कि राजस्थान उच्च न्यायालय की एसबी सिविल रिट पिटीशन सं. 2145/2010 एवं उच्चतम न्यायालय की विशेष अनुमति अपील (दीवानी) सं. 8519/2006 में अन्तरिम आदेश दिनांक 29-09-09 की पालना में उन्हें निर्देशित किया गया है, इसके बावजूद प्रकरण में कार्यवाही लम्बित रखी जा रही है। सांखला ने जिला कलेक्टर के पत्र क्रमांक- एफ.12()राजस्व/2010/3880-3888 दिनांक- 19-05-11, क्र. 11878-11897 दिनांक-01-12- 2010, क्र. 13754-13773 दिनांक- 30-12-2010, क्र. 2338-2357 दिनांक- 29-03-2011 एवं क्र. न्याय/2010/9616-46 दिनांक- 10-11-2010 व क्र. 09/6864 दिनांक-28-10-09 का अपने पत्र में हवाला दिया है, जिनकी स्थानीय अधिकारियों द्वारा कोई पालना नहीं की जा रही है।
     सांखला ने मांग की है कि नेहरू पार्क परिसर, लाडनूं को अतिक्रमण से मुक्त करावें। आवंटित भूमि खसरा नं. 497 सरहद लाडनूं को जिला कलेक्टर नागौर द्वारा पत्र क्रं. राजस्व राजस्व/86/903 दिनांक- 03-03-1986 द्वारा 30 वर्षों की लीज पर निशुल्क आवंटित किया गया था, परन्तु इसमें लीज शर्तों व नियमों का उल्लंघन किया गया है।  यहां निर्मित भवनों के लिए स्थानीय निकायों से निर्माण सम्बंधी आवश्यक स्वीकृति प्राप्त नहीं की गई और न कृषि भूमि के रूपान्तरण की कार्यवाही ही की गई। सांखला ने इस सम्बंध में उपखण्ड अधिकारी कार्यालय से जारी पत्र क्रमांक- सीएम/रीडर/08/42 दिनांक- 03-10-2008, क्र. सीएम/रीडर/08/1623 दिनांक- 04-11-2008,  क्र. राज्यपाल सचिवालय/08/1781 व 1782 दिनांक- 16-10-2008 के सम्बंध में कार्यवाही नहीं की जाना बताते हुए तुरन्त कार्यवाही की मांग की है। उन्होंने तहसीलदार कार्यालय से जारी पत्रांक-  भू.अ./2011/11/768 दिनांक- 07-04-2011 मेंसंलग्र की गई अतिक्रमियों की सूची के अनुसार अतिक्रमणों को हटाने व समस्त अनधिकृत रूप से बने मकानों को सरकारी तहबील में  लेने की मांग भी की है।
    इस सम्बंध में अनावश्यक विलम्ब करने, सभा-संस्थाओं के प्रभाव में आकर कत्र्तव्यनिष्ठा में विफल रहने, अपूर्ण सूचनाओं को अग्रेषित करने, रिकार्ड व पत्रावलियों को बिना देखे ही सूचनाएं भिजवाई जाने को गम्भीर व लापरवाही मानते हुए उच्चाधिकारियों व न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने की चेतावनी भी दी है।

Monday, May 30, 2011

जनाक्रोश और पुलिस की भूमिका: जांच में महत्वपूर्ण होता है अपराधियों की वापसी का रास्ता


        दिनांक 11.3.91 को सुबह अखबार की हैडलाईन्स  देख ही रहा था कि थाना केसरीसिंहपुर, जिला श्रीगंगानगर के थानाधिकारी श्री हुकमसिंह ने दूरभाष पर कहा, सर! कस्बे में गत रात्रि को तीन बड़ी चोरियां हो गयाी हैं। इन वारदातों की जानकारी होने पर कस्बे में लगभग चार-पांच हजार की भीड़ इक_ी हो गई है। कृपया जल्दी पहुंचें। मैं तुरन्त वर्दी पहनकर कस्बा केसरीसिंहपुर पहुंचा। वहां पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। भीड़ भयंकर आक्रोशित थी और पुलिस के विरूद्ध नारे लगा रही थी। थाने का समस्त स्टाफ  सहमा-सहमा सा दिखाई दे रहा था। मुझे देखते ही भीड़ मेरी ओर लपकी और गुस्से का इजहार किया। मैंने भीड़ को समझाकर  घटनास्थल देखने के लिए कहा। चार-पांच हजार लोगों की भीड़ के साथ धक्का-पेल होते हुए मैं मौके पर पहुंचा। पुलिस के विरूद्ध नारेबाजी में ही भीड़ को समझाईश करते हुए घटनास्थल का निरीक्षण किया। भीड़ ने मुल्जिमों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की। मैँने भी ड़ को समझाया कि यदि कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो पुलिस उसको संभालने में लग जाएगी और मुल्जिम बच जाएंगे। अत:तफतीश में थोड़ा समय तो लगेगा ही। भीड़ ने चौबीस घण्टों में  मुल्जिम गिरफ्तार नहीं किए जाने पर आन्दोलन की चेतावनी दी। मैं इस बात पर खुश था कि कम से कम थोड़ा समय तो मिला। बाद की रणनीति पुन: तैयार हो जाएगी और तब तब जिला मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ जाएगा।
      भीड़ थोड़ी शांत हुई। इसके बाद सादा वर्दी में पुलिसकर्मियों को सूचना एकत्रित करने के लिए भेजा गया। पुलिस के परीचित लोगों केा किसी भी प्रकार के संदिग्धों के बारे में सूचना देने के लिए कहा गया। चार-पांच पुलिस दल गठित कर उनको हिदायत दी गई कि कस्बे से बाहर जाने वाले रास्तों के चार-पांच किलोमीटर तक रेकी (इलाके की छानबीन) की जावे। गठित पुलिस दल अपने काम में लग गए। दो-तीन घंटे की रेकी के बाद एक दल ने आकर बताया कि  कस्बे से दो-तीन किलोमीटर दूर रास्ते पर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट पड़े मिले हैं। सूचनामहत्वपूर्ण थी। कस्बे में एक परचून की दुकान में भी नकबजनी की वारदात हुई थी। संभवत: ये बिस्कुट इसी दुकान से चोरी हुए थे। दुकान मालिक को बुलाकर पैकेट दिखाए गए तो उसने अपनी दुकान से चोरी होना बताया। इस पुख्ता जानकारी के बाद यह लगभग तय हो गया था कि चोर वारदात के बाद इसी रास्ते से लौटे हैं। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति ने आकर रिपोर्ट दज्र करवाई कि  उसके घर के सामने चौक में खड़ी ट्रेक्टर-ट्रोली को कोई चोर चोरी करके ले गए हैं। इस सूचना पर इस विचार को बल मिला कि चोर सम्भवत: ट्रेक्टर में आए थे और जाते समय ट्रॉली को उसमें जोड़कर उसमें चोरी का सामान भरकर अपने साथ ले गए। तीन दुकानों का सामान बगैर किसी साधन के ले जाया जाना सम्भव नहीं था।
     थाने में विचार मनन चल ही रहा था कि एक पुलिस दल ने आकर सूचना दी कि कस्बे में स्थित एक फैक्ट्री के चौकीदार ने बताया कि रात को करीब दो बजे जब वह फैक्ट्री के गेट पर था तो वहां से एक ट्रेक्टर गुजरा था। उस ट्रेक्टर में आठ-दस आदमी बैठे थे एवं ट्रोली में सामान भरा हुआ था। ट्रेक्टर की आवाज काफी भारी थी। सम्भवत: वह आयशर रहा होगा। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उसी रास्तें में आगे जाकर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट मिले थे, जिनकी शिनाख्त हो चुकी थी। अत: यह स्पष्टत: हो गया कि चोर टे्रक्टर लाए थे और घर के सामने खड़ी ट्रोली को ट्रेक्टर के साथ जोड़कर चोरी का सामान भरकर उसी रास्ते से गए थे। जिन तीन दुकानों में चोरी हुई थी, उनमें से एक दुकान से कपड़े का सामान, दूसरी दुकान से परचून का सामान, तीसरी दुकान से रेडियो, टीवी, इत्यादि चोरी हुए थे। इसके साथ इस बात को बल मिला कि चोर शाम ढले बाजार में आ गए होंगे और ट्रेक्टर कहीं पर ख्ड़ा करके बाजार में रेकी की होगी।
     कस्बें छोड़े गए पुलिसकर्मियों को एवं सम्पर्क सूत्रों को इस सूचना को और आगे विकसित करने के निर्देश दिए गए। करीब चार-पांच बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जब वह करीब सात बजे अपनी दुकान बंद करके घर जा रहा था, उस समय उसने एक ढाबे के सामने ट्रेक्टर खड़ा देखा था। उस पर आठ दस आदमी बैठे थे। वे आपस में बातें कर रहे थे। देखने में ग्रामीण परिवेश के लग रहे थे। पुलिस दल को भेजकर आस पास की दुकानों व ढाबों से पूछताछ करवाई गई। एक ढाबा मालिक ने बताया कि उसके ढाबे में रात्रि करीब नौ बजे दस लोगों ने खाना खाया था। रोटियां सथी अपने साथ लाए थे। रोटियां ऐ पुराने कपड़े में बंधी हुई थी। उन्होंने ढाबे से मीट की दस प्लेटें लेकर खाना खाया था। इस सूचना पर यह स्पष्ट हो गया कि वे व्यक्ति ठेठ गांव के थे। क्योंकि अक्सर गांव के लोग जब शहर में आते हैं तो खाना उइसी तरह कपड़े में बांधकर लाते हैं एवं कहीं पेड़ की छांव में या अन्य स्थान पर बैठकर खाना खा लेते हैं। सब्जी नहीं होती है तो किसी ढाबे से ले लेते हैँ, नहीं तो बिना सब्जी के ही खा लेते हैं। जाने के रास्ते(Way of Return)की ओर बीस-पच्चीस किलोमीटर क्षेत्र के गांवों की मौजेवार (Village Crime Note Books)  निकालकर बदमाशों के रिकॉर्ड की छानबीन शुरू की गई। हालांकि कार्रवाई हवा में तीर चलाने जैसी थी लेकिन जनता के चौबीस घण्टे के अल्टीमेटम के बाद जनाक्रोश को देखते हुए भरपूर प्रयास किया जाना आवश्यक था।
     अब तक की तफतीश व संदिग्धों के बारे में सम्पर्क सूत्रों को बताया गया और तफतीश को आगे बढाया गया।    
 ...लगभग सात बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि ट्रेक्टर पर सवार संदिग्ध लोगों ने जिस ढाबे पर खाना खाया था उसके पास खड़े एक टैम्पो चालक को उनमें से एक व्यक्ति ने गांव संगतपुरा में चलने के लिए कहा था। रात्रि के समय में जिले में उग्रवादी घटना के मद्दे नजर टैम्पो चालक ने वहां जाने से मना कर दिया था। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी। गांव संगतपुरा की मौजेवार को निकालकर  बदमाशों की सूची बनाई गई। थोड़ी देर बाद एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जिस व्यक्ति ने टैम्पो चालक से बात की थी उस संदिग्ध व्यक्ति को उसने भी देखा था। वह व्यक्ति तीन-चार महीने पहले एक समाज विशेष की किसी औरत को लेकर बैठी समाज की पंचायत में एक पक्ष की ओर से बोल रहा था। उसकी रिश्तेदारी गांव संगतपुरा में थी एवं वह गांव 3 टी में सुरजीत सिंह के घर ब्याही हुई थी।
       3  टी की मौजेवार देखने से पता चला कि सुरजीत सिंह का कई नकबजनियों में चालान हुआ था। एक पुलिस टीम ग्राम संगतपुरा में भेजी गई जिसने सुरजीत सिंह के ससुर से सुरजीत सिंह के बारे में पूछताछ की तो उसने कई दिनों से उस गांव में उसका आना नहीं बताया। ग्राम 3 टी में सुरजीत के घर पर उसके ससुर को साथ लेकर पुलिस दल ने रात्रि करीब बारह बजे छापा मारा। बड़ी ऊंची आवाज में डैक बज रहा था। बार-बार दरवाजा खटखटाने के बावजूद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस दल ने चारों ओर से घेरा डालकर पुलिस कमाण्डो को दीवार पर चढाकर अन्दर से मुख्य दरवाजा खोलने के लिए कहा। दरवाजा खुलते ही पांच-सात लोगों के जागने पर पूछा गया तो पुलिस पार्टी को देखकर वे हड़बड़ाकर भागने लगे। उनको रोक कर भागने का कारण पूछा तो सभी के मुंह से निकला गलती हो गई। घर की तलाशी लेने पर दुकानों से चोरी गया पूरा सामान मिल गया एवं आठ व्यक्तियों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया। सारे घर की तलाशी ली गई तो उस दिन पिछली रात हुई चोरी के अतिरिक्त  इलाके में हुई आठ-दस अन्य चोरियों का सामान भी उनके घर में मिल गया, जिसे धारा 102 द.प्र.सं. के तहत जब्त किया गया। ट्रेक्टर व ट्रोली के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने करीब एक घंटा पहले घमूड़वाली क्षेत्र में गांव 36 एलएनपी में मोहन सिंह के घर जाना बताया। मोहनसिंह व सुरजीत सिंह आपस में रिश्तेदार हैं।  वायरलैस पर घमूड़वाली थानाधिकारी श्री राजेन्द्र सिंह को सूचना दी गई कि 36 एलएनपी में मोहनसिं के घर जाकर ट्रेक्टर आने का इंतजार करे। करीब एक घंटे बाद ट्रेक्टर वहां पहुंचा तो मोहनसिंह व एक अन्य नकबजन को ट्रेक्टर ट्रोली सहित गिरफ्तार कर लिया गया।
       इस प्रकार कड़ी से कड़ी जोड़कर एक बहुत बड़ी वारदात मात्र अठारह-बीस घंटे में खोलने में  पुलिस को कामयाबी मिली। इस कामयाबी में वापसी का रास्ता (Way of retreat) सिद्धांत काम आया।                

जनाक्रोश और पुलिस की भूमिका: जांच में महत्वपूर्ण होता है अपराधियों की वापसी का रास्ता


        दिनांक 11.3.91 को सुबह अखबार की हैडलाईन्स  देख ही रहा था कि थाना केसरीसिंहपुर, जिला श्रीगंगानगर के थानाधिकारी श्री हुकमसिंह ने दूरभाष पर कहा, सर! कस्बे में गत रात्रि को तीन बड़ी चोरियां हो गयाी हैं। इन वारदातों की जानकारी होने पर कस्बे में लगभग चार-पांच हजार की भीड़ इक_ी हो गई है। कृपया जल्दी पहुंचें। मैं तुरन्त वर्दी पहनकर कस्बा केसरीसिंहपुर पहुंचा। वहां पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। भीड़ भयंकर आक्रोशित थी और पुलिस के विरूद्ध नारे लगा रही थी। थाने का समस्त स्टाफ  सहमा-सहमा सा दिखाई दे रहा था। मुझे देखते ही भीड़ मेरी ओर लपकी और गुस्से का इजहार किया। मैंने भीड़ को समझाकर  घटनास्थल देखने के लिए कहा। चार-पांच हजार लोगों की भीड़ के साथ धक्का-पेल होते हुए मैं मौके पर पहुंचा। पुलिस के विरूद्ध नारेबाजी में ही भीड़ को समझाईश करते हुए घटनास्थल का निरीक्षण किया। भीड़ ने मुल्जिमों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की। मैँने भी ड़ को समझाया कि यदि कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो पुलिस उसको संभालने में लग जाएगी और मुल्जिम बच जाएंगे। अत:तफतीश में थोड़ा समय तो लगेगा ही। भीड़ ने चौबीस घण्टों में  मुल्जिम गिरफ्तार नहीं किए जाने पर आन्दोलन की चेतावनी दी। मैं इस बात पर खुश था कि कम से कम थोड़ा समय तो मिला। बाद की रणनीति पुन: तैयार हो जाएगी और तब तब जिला मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ जाएगा।
      भीड़ थोड़ी शांत हुई। इसके बाद सादा वर्दी में पुलिसकर्मियों को सूचना एकत्रित करने के लिए भेजा गया। पुलिस के परीचित लोगों केा किसी भी प्रकार के संदिग्धों के बारे में सूचना देने के लिए कहा गया। चार-पांच पुलिस दल गठित कर उनको हिदायत दी गई कि कस्बे से बाहर जाने वाले रास्तों के चार-पांच किलोमीटर तक रेकी (इलाके की छानबीन) की जावे। गठित पुलिस दल अपने काम में लग गए। दो-तीन घंटे की रेकी के बाद एक दल ने आकर बताया कि  कस्बे से दो-तीन किलोमीटर दूर रास्ते पर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट पड़े मिले हैं। सूचनामहत्वपूर्ण थी। कस्बे में एक परचून की दुकान में भी नकबजनी की वारदात हुई थी। संभवत: ये बिस्कुट इसी दुकान से चोरी हुए थे। दुकान मालिक को बुलाकर पैकेट दिखाए गए तो उसने अपनी दुकान से चोरी होना बताया। इस पुख्ता जानकारी के बाद यह लगभग तय हो गया था कि चोर वारदात के बाद इसी रास्ते से लौटे हैं। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति ने आकर रिपोर्ट दज्र करवाई कि  उसके घर के सामने चौक में खड़ी ट्रेक्टर-ट्रोली को कोई चोर चोरी करके ले गए हैं। इस सूचना पर इस विचार को बल मिला कि चोर सम्भवत: ट्रेक्टर में आए थे और जाते समय ट्रॉली को उसमें जोड़कर उसमें चोरी का सामान भरकर अपने साथ ले गए। तीन दुकानों का सामान बगैर किसी साधन के ले जाया जाना सम्भव नहीं था।
     थाने में विचार मनन चल ही रहा था कि एक पुलिस दल ने आकर सूचना दी कि कस्बे में स्थित एक फैक्ट्री के चौकीदार ने बताया कि रात को करीब दो बजे जब वह फैक्ट्री के गेट पर था तो वहां से एक ट्रेक्टर गुजरा था। उस ट्रेक्टर में आठ-दस आदमी बैठे थे एवं ट्रोली में सामान भरा हुआ था। ट्रेक्टर की आवाज काफी भारी थी। सम्भवत: वह आयशर रहा होगा। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उसी रास्तें में आगे जाकर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट मिले थे, जिनकी शिनाख्त हो चुकी थी। अत: यह स्पष्टत: हो गया कि चोर टे्रक्टर लाए थे और घर के सामने खड़ी ट्रोली को ट्रेक्टर के साथ जोड़कर चोरी का सामान भरकर उसी रास्ते से गए थे। जिन तीन दुकानों में चोरी हुई थी, उनमें से एक दुकान से कपड़े का सामान, दूसरी दुकान से परचून का सामान, तीसरी दुकान से रेडियो, टीवी, इत्यादि चोरी हुए थे। इसके साथ इस बात को बल मिला कि चोर शाम ढले बाजार में आ गए होंगे और ट्रेक्टर कहीं पर ख्ड़ा करके बाजार में रेकी की होगी।
     कस्बें छोड़े गए पुलिसकर्मियों को एवं सम्पर्क सूत्रों को इस सूचना को और आगे विकसित करने के निर्देश दिए गए। करीब चार-पांच बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जब वह करीब सात बजे अपनी दुकान बंद करके घर जा रहा था, उस समय उसने एक ढाबे के सामने ट्रेक्टर खड़ा देखा था। उस पर आठ दस आदमी बैठे थे। वे आपस में बातें कर रहे थे। देखने में ग्रामीण परिवेश के लग रहे थे। पुलिस दल को भेजकर आस पास की दुकानों व ढाबों से पूछताछ करवाई गई। एक ढाबा मालिक ने बताया कि उसके ढाबे में रात्रि करीब नौ बजे दस लोगों ने खाना खाया था। रोटियां सथी अपने साथ लाए थे। रोटियां ऐ पुराने कपड़े में बंधी हुई थी। उन्होंने ढाबे से मीट की दस प्लेटें लेकर खाना खाया था। इस सूचना पर यह स्पष्ट हो गया कि वे व्यक्ति ठेठ गांव के थे। क्योंकि अक्सर गांव के लोग जब शहर में आते हैं तो खाना उइसी तरह कपड़े में बांधकर लाते हैं एवं कहीं पेड़ की छांव में या अन्य स्थान पर बैठकर खाना खा लेते हैं। सब्जी नहीं होती है तो किसी ढाबे से ले लेते हैँ, नहीं तो बिना सब्जी के ही खा लेते हैं। जाने के रास्ते(Way of Return)की ओर बीस-पच्चीस किलोमीटर क्षेत्र के गांवों की मौजेवार (Village Crime Note Books)  निकालकर बदमाशों के रिकॉर्ड की छानबीन शुरू की गई। हालांकि कार्रवाई हवा में तीर चलाने जैसी थी लेकिन जनता के चौबीस घण्टे के अल्टीमेटम के बाद जनाक्रोश को देखते हुए भरपूर प्रयास किया जाना आवश्यक था।
     अब तक की तफतीश व संदिग्धों के बारे में सम्पर्क सूत्रों को बताया गया और तफतीश को आगे बढाया गया।    
 ...लगभग सात बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि ट्रेक्टर पर सवार संदिग्ध लोगों ने जिस ढाबे पर खाना खाया था उसके पास खड़े एक टैम्पो चालक को उनमें से एक व्यक्ति ने गांव संगतपुरा में चलने के लिए कहा था। रात्रि के समय में जिले में उग्रवादी घटना के मद्दे नजर टैम्पो चालक ने वहां जाने से मना कर दिया था। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी। गांव संगतपुरा की मौजेवार को निकालकर  बदमाशों की सूची बनाई गई। थोड़ी देर बाद एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जिस व्यक्ति ने टैम्पो चालक से बात की थी उस संदिग्ध व्यक्ति को उसने भी देखा था। वह व्यक्ति तीन-चार महीने पहले एक समाज विशेष की किसी औरत को लेकर बैठी समाज की पंचायत में एक पक्ष की ओर से बोल रहा था। उसकी रिश्तेदारी गांव संगतपुरा में थी एवं वह गांव 3 टी में सुरजीत सिंह के घर ब्याही हुई थी।
       3  टी की मौजेवार देखने से पता चला कि सुरजीत सिंह का कई नकबजनियों में चालान हुआ था। एक पुलिस टीम ग्राम संगतपुरा में भेजी गई जिसने सुरजीत सिंह के ससुर से सुरजीत सिंह के बारे में पूछताछ की तो उसने कई दिनों से उस गांव में उसका आना नहीं बताया। ग्राम 3 टी में सुरजीत के घर पर उसके ससुर को साथ लेकर पुलिस दल ने रात्रि करीब बारह बजे छापा मारा। बड़ी ऊंची आवाज में डैक बज रहा था। बार-बार दरवाजा खटखटाने के बावजूद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस दल ने चारों ओर से घेरा डालकर पुलिस कमाण्डो को दीवार पर चढाकर अन्दर से मुख्य दरवाजा खोलने के लिए कहा। दरवाजा खुलते ही पांच-सात लोगों के जागने पर पूछा गया तो पुलिस पार्टी को देखकर वे हड़बड़ाकर भागने लगे। उनको रोक कर भागने का कारण पूछा तो सभी के मुंह से निकला गलती हो गई। घर की तलाशी लेने पर दुकानों से चोरी गया पूरा सामान मिल गया एवं आठ व्यक्तियों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया। सारे घर की तलाशी ली गई तो उस दिन पिछली रात हुई चोरी के अतिरिक्त  इलाके में हुई आठ-दस अन्य चोरियों का सामान भी उनके घर में मिल गया, जिसे धारा 102 द.प्र.सं. के तहत जब्त किया गया। ट्रेक्टर व ट्रोली के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने करीब एक घंटा पहले घमूड़वाली क्षेत्र में गांव 36 एलएनपी में मोहन सिंह के घर जाना बताया। मोहनसिंह व सुरजीत सिंह आपस में रिश्तेदार हैं।  वायरलैस पर घमूड़वाली थानाधिकारी श्री राजेन्द्र सिंह को सूचना दी गई कि 36 एलएनपी में मोहनसिं के घर जाकर ट्रेक्टर आने का इंतजार करे। करीब एक घंटे बाद ट्रेक्टर वहां पहुंचा तो मोहनसिंह व एक अन्य नकबजन को ट्रेक्टर ट्रोली सहित गिरफ्तार कर लिया गया।
       इस प्रकार कड़ी से कड़ी जोड़कर एक बहुत बड़ी वारदात मात्र अठारह-बीस घंटे में खोलने में  पुलिस को कामयाबी मिली। इस कामयाबी में वापसी का रास्ता (Way of retreat) सिद्धांत काम आया।                

जनाक्रोश और पुलिस की भूमिका: जांच में महत्वपूर्ण होता है अपराधियों की वापसी का रास्ता


        दिनांक 11.3.91 को सुबह अखबार की हैडलाईन्स  देख ही रहा था कि थाना केसरीसिंहपुर, जिला श्रीगंगानगर के थानाधिकारी श्री हुकमसिंह ने दूरभाष पर कहा, सर! कस्बे में गत रात्रि को तीन बड़ी चोरियां हो गयाी हैं। इन वारदातों की जानकारी होने पर कस्बे में लगभग चार-पांच हजार की भीड़ इक_ी हो गई है। कृपया जल्दी पहुंचें। मैं तुरन्त वर्दी पहनकर कस्बा केसरीसिंहपुर पहुंचा। वहां पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। भीड़ भयंकर आक्रोशित थी और पुलिस के विरूद्ध नारे लगा रही थी। थाने का समस्त स्टाफ  सहमा-सहमा सा दिखाई दे रहा था। मुझे देखते ही भीड़ मेरी ओर लपकी और गुस्से का इजहार किया। मैंने भीड़ को समझाकर  घटनास्थल देखने के लिए कहा। चार-पांच हजार लोगों की भीड़ के साथ धक्का-पेल होते हुए मैं मौके पर पहुंचा। पुलिस के विरूद्ध नारेबाजी में ही भीड़ को समझाईश करते हुए घटनास्थल का निरीक्षण किया। भीड़ ने मुल्जिमों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की। मैँने भी ड़ को समझाया कि यदि कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो पुलिस उसको संभालने में लग जाएगी और मुल्जिम बच जाएंगे। अत:तफतीश में थोड़ा समय तो लगेगा ही। भीड़ ने चौबीस घण्टों में  मुल्जिम गिरफ्तार नहीं किए जाने पर आन्दोलन की चेतावनी दी। मैं इस बात पर खुश था कि कम से कम थोड़ा समय तो मिला। बाद की रणनीति पुन: तैयार हो जाएगी और तब तब जिला मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ जाएगा।
      भीड़ थोड़ी शांत हुई। इसके बाद सादा वर्दी में पुलिसकर्मियों को सूचना एकत्रित करने के लिए भेजा गया। पुलिस के परीचित लोगों केा किसी भी प्रकार के संदिग्धों के बारे में सूचना देने के लिए कहा गया। चार-पांच पुलिस दल गठित कर उनको हिदायत दी गई कि कस्बे से बाहर जाने वाले रास्तों के चार-पांच किलोमीटर तक रेकी (इलाके की छानबीन) की जावे। गठित पुलिस दल अपने काम में लग गए। दो-तीन घंटे की रेकी के बाद एक दल ने आकर बताया कि  कस्बे से दो-तीन किलोमीटर दूर रास्ते पर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट पड़े मिले हैं। सूचनामहत्वपूर्ण थी। कस्बे में एक परचून की दुकान में भी नकबजनी की वारदात हुई थी। संभवत: ये बिस्कुट इसी दुकान से चोरी हुए थे। दुकान मालिक को बुलाकर पैकेट दिखाए गए तो उसने अपनी दुकान से चोरी होना बताया। इस पुख्ता जानकारी के बाद यह लगभग तय हो गया था कि चोर वारदात के बाद इसी रास्ते से लौटे हैं। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति ने आकर रिपोर्ट दज्र करवाई कि  उसके घर के सामने चौक में खड़ी ट्रेक्टर-ट्रोली को कोई चोर चोरी करके ले गए हैं। इस सूचना पर इस विचार को बल मिला कि चोर सम्भवत: ट्रेक्टर में आए थे और जाते समय ट्रॉली को उसमें जोड़कर उसमें चोरी का सामान भरकर अपने साथ ले गए। तीन दुकानों का सामान बगैर किसी साधन के ले जाया जाना सम्भव नहीं था।
     थाने में विचार मनन चल ही रहा था कि एक पुलिस दल ने आकर सूचना दी कि कस्बे में स्थित एक फैक्ट्री के चौकीदार ने बताया कि रात को करीब दो बजे जब वह फैक्ट्री के गेट पर था तो वहां से एक ट्रेक्टर गुजरा था। उस ट्रेक्टर में आठ-दस आदमी बैठे थे एवं ट्रोली में सामान भरा हुआ था। ट्रेक्टर की आवाज काफी भारी थी। सम्भवत: वह आयशर रहा होगा। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उसी रास्तें में आगे जाकर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट मिले थे, जिनकी शिनाख्त हो चुकी थी। अत: यह स्पष्टत: हो गया कि चोर टे्रक्टर लाए थे और घर के सामने खड़ी ट्रोली को ट्रेक्टर के साथ जोड़कर चोरी का सामान भरकर उसी रास्ते से गए थे। जिन तीन दुकानों में चोरी हुई थी, उनमें से एक दुकान से कपड़े का सामान, दूसरी दुकान से परचून का सामान, तीसरी दुकान से रेडियो, टीवी, इत्यादि चोरी हुए थे। इसके साथ इस बात को बल मिला कि चोर शाम ढले बाजार में आ गए होंगे और ट्रेक्टर कहीं पर ख्ड़ा करके बाजार में रेकी की होगी।
     कस्बें छोड़े गए पुलिसकर्मियों को एवं सम्पर्क सूत्रों को इस सूचना को और आगे विकसित करने के निर्देश दिए गए। करीब चार-पांच बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जब वह करीब सात बजे अपनी दुकान बंद करके घर जा रहा था, उस समय उसने एक ढाबे के सामने ट्रेक्टर खड़ा देखा था। उस पर आठ दस आदमी बैठे थे। वे आपस में बातें कर रहे थे। देखने में ग्रामीण परिवेश के लग रहे थे। पुलिस दल को भेजकर आस पास की दुकानों व ढाबों से पूछताछ करवाई गई। एक ढाबा मालिक ने बताया कि उसके ढाबे में रात्रि करीब नौ बजे दस लोगों ने खाना खाया था। रोटियां सथी अपने साथ लाए थे। रोटियां ऐ पुराने कपड़े में बंधी हुई थी। उन्होंने ढाबे से मीट की दस प्लेटें लेकर खाना खाया था। इस सूचना पर यह स्पष्ट हो गया कि वे व्यक्ति ठेठ गांव के थे। क्योंकि अक्सर गांव के लोग जब शहर में आते हैं तो खाना उइसी तरह कपड़े में बांधकर लाते हैं एवं कहीं पेड़ की छांव में या अन्य स्थान पर बैठकर खाना खा लेते हैं। सब्जी नहीं होती है तो किसी ढाबे से ले लेते हैँ, नहीं तो बिना सब्जी के ही खा लेते हैं। जाने के रास्ते(Way of Return)की ओर बीस-पच्चीस किलोमीटर क्षेत्र के गांवों की मौजेवार (Village Crime Note Books)  निकालकर बदमाशों के रिकॉर्ड की छानबीन शुरू की गई। हालांकि कार्रवाई हवा में तीर चलाने जैसी थी लेकिन जनता के चौबीस घण्टे के अल्टीमेटम के बाद जनाक्रोश को देखते हुए भरपूर प्रयास किया जाना आवश्यक था।
     अब तक की तफतीश व संदिग्धों के बारे में सम्पर्क सूत्रों को बताया गया और तफतीश को आगे बढाया गया।      
 ...लगभग सात बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि ट्रेक्टर पर सवार संदिग्ध लोगों ने जिस ढाबे पर खाना खाया था उसके पास खड़े एक टैम्पो चालक को उनमें से एक व्यक्ति ने गांव संगतपुरा में चलने के लिए कहा था। रात्रि के समय में जिले में उग्रवादी घटना के मद्दे नजर टैम्पो चालक ने वहां जाने से मना कर दिया था। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी। गांव संगतपुरा की मौजेवार को निकालकर  बदमाशों की सूची बनाई गई। थोड़ी देर बाद एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जिस व्यक्ति ने टैम्पो चालक से बात की थी उस संदिग्ध व्यक्ति को उसने भी देखा था। वह व्यक्ति तीन-चार महीने पहले एक समाज विशेष की किसी औरत को लेकर बैठी समाज की पंचायत में एक पक्ष की ओर से बोल रहा था। उसकी रिश्तेदारी गांव संगतपुरा में थी एवं वह गांव 3 टी में सुरजीत सिंह के घर ब्याही हुई थी।
       3  टी की मौजेवार देखने से पता चला कि सुरजीत सिंह का कई नकबजनियों में चालान हुआ था। एक पुलिस टीम ग्राम संगतपुरा में भेजी गई जिसने सुरजीत सिंह के ससुर से सुरजीत सिंह के बारे में पूछताछ की तो उसने कई दिनों से उस गांव में उसका आना नहीं बताया। ग्राम 3 टी में सुरजीत के घर पर उसके ससुर को साथ लेकर पुलिस दल ने रात्रि करीब बारह बजे छापा मारा। बड़ी ऊंची आवाज में डैक बज रहा था। बार-बार दरवाजा खटखटाने के बावजूद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस दल ने चारों ओर से घेरा डालकर पुलिस कमाण्डो को दीवार पर चढाकर अन्दर से मुख्य दरवाजा खोलने के लिए कहा। दरवाजा खुलते ही पांच-सात लोगों के जागने पर पूछा गया तो पुलिस पार्टी को देखकर वे हड़बड़ाकर भागने लगे। उनको रोक कर भागने का कारण पूछा तो सभी के मुंह से निकला गलती हो गई। घर की तलाशी लेने पर दुकानों से चोरी गया पूरा सामान मिल गया एवं आठ व्यक्तियों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया। सारे घर की तलाशी ली गई तो उस दिन पिछली रात हुई चोरी के अतिरिक्त  इलाके में हुई आठ-दस अन्य चोरियों का सामान भी उनके घर में मिल गया, जिसे धारा 102 द.प्र.सं. के तहत जब्त किया गया। ट्रेक्टर व ट्रोली के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने करीब एक घंटा पहले घमूड़वाली क्षेत्र में गांव 36 एलएनपी में मोहन सिंह के घर जाना बताया। मोहनसिंह व सुरजीत सिंह आपस में रिश्तेदार हैं।  वायरलैस पर घमूड़वाली थानाधिकारी श्री राजेन्द्र सिंह को सूचना दी गई कि 36 एलएनपी में मोहनसिं के घर जाकर ट्रेक्टर आने का इंतजार करे। करीब एक घंटे बाद ट्रेक्टर वहां पहुंचा तो मोहनसिंह व एक अन्य नकबजन को ट्रेक्टर ट्रोली सहित गिरफ्तार कर लिया गया।
       इस प्रकार कड़ी से कड़ी जोड़कर एक बहुत बड़ी वारदात मात्र अठारह-बीस घंटे में खोलने में  पुलिस को कामयाबी मिली। इस कामयाबी में वापसी का रास्ता (Way of retreat) सिद्धांत काम आया।                

Sunday, May 15, 2011












'दुनिया: पराकाष्ठाएँ' - अपराध

'दुनिया: पराकाष्ठाएँ' श्रृंखला के चौथे भाग में अपराध की पड़ताल की गई है.
दुनिया में प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ लोगों को हिरासत में लिया जाता है. इनमें से लगभग आधे लोग अमरीका, चीन और रूस में क़ैद किए जाते हैं.
'वर्ल्ड प्रिज़न पापुलेशन' ने वर्ष 2009 के लिए जो आंकड़े जारी किए हैं उनके मुताबिक अमरीका में हर एक लाख व्यक्तियों में 756 लोग कैद में हैं, वहीं दुनिया भर में प्रति लाख व्यक्ति 145 लोग क़ैद में है.
दूसरी ओर लेचसेनस्टीन में मात्र सात लोग वर्ष 2008 में क़ैद थे. हालांकि कुछ लोग ऑस्ट्रिया की जेलों में कैद थे फिर भी प्रति लाख महज़ 20 लोग ही क़ैद थे.
संयुक्त राष्ट्र के ‘नशा और अपराध’ कार्यालय 198 देशों में हत्या के आंकड़े पेश करता है जो कि न्यायिक प्रणाली से मिली जानकारी के आधार पर हैं.
मध्य और दक्षिणी अमरीकी देशों में सबसे ज्यादा हत्या की दर है.
हॉंडूराज़ में प्रति लाख व्यक्तियों में 60.9 व्यक्तियों की हत्या की ख़बर है जबकि जमैका में 59.5 है. आईसलैंड और मोनाको में आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2008 में यह दर शून्य थी. इंग्लैंड और वेल्स में 1.2 और अमरीका में 5.2 है.
कंसलटेंसी कंपनी मेरसर के ‘क्वालिटी ऑफ़ लीविंग’ नाम के एक सर्वेक्षण के मुताबिक लक्सेमबर्ग में व्यक्तिगत सुरक्षा का स्तर सबसे अच्छा है और बग़दाद दुनिया में सबसे ज़्यादा असुरक्षित शहर है.
इस सर्वेक्षण में 215 शहरों का विश्लेषण किया गया जिसमें अपराध के स्तर और आंतरिक स्थिरता जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया गया था.

अपराध रिपोर्टिंग का अपराध










एक.दूसरे से आगे रहने की होड़ में समाचार चैनल रिपोर्टिंग के बहुत बुनियादी नियमों और उसूलों की भी परवाह नहीं करते
समाचार चैनलों में अपराध की खबरों को लेकर एक अतिरिक्त उत्साह दिखाई पड़ता है. लेकिन अपराध की खबर शहरी.मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से हो और उसमें सामाजिक रिश्तों और भावनाओं का एक एंगल भी हो तो चैनलों की दिलचस्पी देखते ही बनती है. ऐसी खबरों में अतिरिक्त दिलचस्पी में कोई बुराई नहीं बशर्ते रिपोर्ट करते हुए पत्रकारिता और रिपोर्टिंग के बुनियादी उसूलों और नियमों का ईमानदारी से पालन हो. 
लेकिन दिक्कत तब शुरू होती है जब चैनल ऐसी खबरों को ना सिर्फ अतिरिक्त रूप से सनसनीखेज बनाकर बल्कि खूब बढ़ा.चढ़ाकर पेश करने लगते हैं. यही नहीं, एक.दूसरे से आगे रहने की होड़ में वे रिपोर्टिंग के बहुत बुनियादी नियमों और उसूलों की भी परवाह नहीं करते. इस प्रक्रिया में उनके अपराध संवाददाता पुलिस के प्रवक्ता बन जाते हैं, वे ऐसी.ऐसी बेसिर.पैर की कहानियां गढ़ने लगते हैं कि तथ्य और गल्प के बीच का भेद मिट जाता है,


ताजा मामला दिल्ली की युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की मौत का है. निरुपमा अपने सहपाठी और युवा पत्रकार प्रियभांशु रंजन से प्रेम करती थीं. दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन निरुपमा के घरवालों को यह मंजूर नहीं था. निरुपमा की 29 अप्रैल को अपने गृहनगर तिलैया ;झारखंड में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी जो बाद में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ष्हत्या निकली. इसे स्वाभाविक तौर पर आनर किलिंग का मामला माना गया जिसने निरुपमा के सहपाठियोंए सहकर्मियों, शिक्षकों के अलावा बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और महिला.छात्र संगठनों को आंदोलित कर दिया ;इनमें यह लेखक भी शामिल है.


स्वाभाविक तौर पर अधिकांश चैनलों ने निरुपमा मामले को जोर.शोर से उठाया, हालांकि अधिकांश चैनलों की नींद निरुपमा की मौत के चार दिन बाद तब खुली जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या की बात सामने आने के बाद एनडीटीवी और इंडियन एक्सप्रेस ने इसे प्रमुखता से उठाया. असल में, चैनलों के साथ एक अजीब बात यह भी है कि जब तक किसी खबर को दिल्ली का कोई बड़ा अंग्रेजी अखबार उसके पूरे पर्सपेक्टिव के साथ अपने पहले पन्ने की स्टोरी नहीं बनाता, चैनल आम तौर पर उस खबर को छूते नहीं हैं या आम रूटीन की खबर की तरह ट्रीट करते हैं, लेकिन जैसे ही वह खबर इन अंग्रेजी अख़बारों के पहले पन्ने पर आ जाती है, चैनल बिलकुल हाइपर हो जाते हैं, चैनलों में एक और प्रवृत्ति यह है कि अधिकांश चैनल किसी खबर को पूरा महत्व तब देते हैं जब कोई बड़ा और टीआरपी की दौड़ में आगे चैनल उसे उछालने लग जाता है.


निरुपमा के मामले में भी यह भेड़चाल साफ दिखी. पहले तो चैनलों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट, निरुपमा के पिता की चिट्ठी, निरुपमा के एसएमएस    और प्रियभांशु के बयानों के आधार पर इसे ऑनर किलिंग के मामले की तरह उठाया लेकिन जल्दी ही कई चैनलों के संपादकों ध्रिपोर्टरों की नैतिकता और कई तरह की भावनाएं जोर मारने लगीं, खासकर प्रियभांशु के खिलाफ स्थानीय कोर्ट के निर्देश और पुलिस की ऑफ द रिकॉर्ड ब्रीफिंग ने इन्हें खुलकर खेलने और कहानियां गढ़ने का मौका दे दिया. अपराध संवाददाताओं को और क्या चाहिए था? पूरी एकनिष्ठता के साथ वे प्रियभांशु के खिलाफ पुलिस द्वारा प्रचारित आधे.अधूरे तथ्यों और गढ़ी हुई कहानियों को बिना क्रॉस चेक किए तथ्य की तरह पेश करने लगे.


दरअसल, अपराध संवाददाताओं का यह अपराध नया नहीं है, इक्का.दुक्का अपवादों को छोड़कर चैनलों और अखबारों में क्राइम रिपोर्टिंग पूरी तरह से पुलिस के हाथों का खिलौना बन गई है. सबसे आपत्तिजनक यह है कि अधिकांश क्राइम रिपोर्टर पुलिस से मिली जानकारियों को बिना पुलिस का हवाला दिए अपनी एक्सक्लूसिव खबर की तरह पेश करते हैं.


यह ठीक है कि क्राइम रिपोर्टिंग में पुलिस एक महत्वपूर्ण स्रोत है लेकिन उसी पर पूरी तरह से निर्भर हो जाने का मतलब है अपनी स्वतंत्रता पुलिस के पास गिरवी रख देना, दूसरे यह पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांत यानी हर खबर की कई स्रोतों से पुष्टि या क्रॉस चेकिंग का भी उल्लंघन है. आश्चर्य नहीं कि इस तरह की गल्प रिपोर्टिंग के कारण पुलिस और मीडिया द्वारा अपराधी और आतंकवादी घोषित किए गए कई निर्दोष लोग अंततः कोर्ट से बाइज्जत बरी हो गए, लेकिन अपराध रिपोर्टिंग आज भी अपने अनगिनत अपराधों से सबक सीखने के लिए तैयार नहीं है.






कब मिलेगा अपराध पीड़ितों को हक


भोपाल. राजधानी में हर महीने औसतन डेढ़ हजार अपराध होते हैं। इनमें से 40 फीसदी तो ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ितों को तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत होती है। यदि राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में हुए संशोधन के मुताबिक अपराध क्षतिपूर्ति योजना लागू कर दे, तो इन लोगों को तुरंत राहत मिल सकती है।

 
भोपाल. राजधानी में हर महीने औसतन डेढ़ हजार अपराध होते हैं। इनमें से 40 फीसदी तो ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ितों को तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत होती है। यदि राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में हुए संशोधन के मुताबिक अपराध क्षतिपूर्ति योजना लागू कर दे, तो इन लोगों को तुरंत राहत मिल सकती है।भोपाल. राजधानी में हर महीने औसतन डेढ़ हजार अपराध होते हैं। इनमें से 40 फीसदी तो ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ितों को तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत होती है। यदि राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में हुए संशोधन के मुताबिक अपराध क्षतिपूर्ति योजना लागू कर दे, तो इन लोगों को तुरंत राहत मिल सकती है।
संसद ने इस संबंध में कानून भी बना दिया है, लेकिन राज्य सरकार अब भी पीड़ितों का हक दबाए बैठी है। अफसर से लेकर मंत्री तक अपराध पीड़ितों की मदद के सवाल पर गोलमोल जवाब दे रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दंड प्रक्रिया संहिता में हुए संशोधन के बाद राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह केंद्र के साथ मिलकर अपराध पीड़ितों को मदद देने के लिए फंड बनाए, लेकिन प्रदेश सरकार इसमें कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है।

संसद ने सीआरपीसी में संशोधन कर पीड़ितों को तत्काल मदद देने के लिए 357 (ए) धारा जोड़ी है। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकारें अपराध पीड़ितों की मदद के लिए एक फंड बनाएगी। राज्य, केंद्र के साथ समन्वय कर यह योजना तैयार करेंगे, लेकिन मध्यप्रदेश में अब तक इस दिशा में कोई काम शुरू नहीं हुआ है।

खास बात यह है कि पुलिस मुख्यालय ने सीआरपीसी में संशोधन की प्रति सभी जिलों के एसपी को भेज तो दी है, लेकिन खुद मुख्यालय को भी नहीं पता कि पीड़ितों को मुआवजा कैसे दिया जाएगा?

इन्हें जानकारी ही नहीं..

फिलहाल इस फाइल का क्या स्टेटस है, यह दिखवाना पड़ेगा। इसके बाद ही इस विषय में कुछ कहना संभव होगा। मुझे अपराध पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दिए जाने के विषय में जानकारी नहीं है।""

नरोत्तम मिश्रा,कानून मंत्री

इस विषय में अभी कुछ बता पाना संभव नहीं है, मैं इस समय मीटिंग में हूं।""

एके मिश्रा,प्रमुख सचिव, विधि विभाग

सीआरपीसी में यह संशोधन हुआ है, लेकिन अब तक स्कीम बनकर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को प्राप्त नहीं हुई है।""

अनिल कुमार चतुर्वेदी, सदस्य सचिव,राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण

क्या करना होगा

गत मार्च में श्रीनगर में देशभर के कानून विशेषज्ञों और पुलिस अफसरों की वर्कशॉप के बाद सभी राज्य सरकारों को आर्थिक क्षतिपूर्ति योजना लागू करने के लिए मसौदा भेजा गया है। इसके मुताबिक- राज्य सरकारें क्षतिपूर्ति देने हेतु विशेष फंड बनाएं। जिला व तहसील स्तर पर अपराध पीड़ित सहायता सेल बनें, जो पीड़ितों को मार्गदर्शन दें। प्रारंभिक तौर पर गंभीर अपराधों के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दी जाए।

सरकार की दिक्कतें

संशोधन के मुताबिक हर वह व्यक्ति पीड़ित होगा, जिसे शारीरिक-आर्थिक हानि होगी। यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि किन अपराधों के पीड़ितों को मुआवजा दिया जाएगा और कितना। सबसे बड़ी दिक्कत है कि मुआवजा देने के लिए सरकार फंड का बंदोबस्त कहां से करेगी?

योजना से फायदा

हत्या या किसी अन्य अपराध में मौत पर परिजन कर सकेंगे मुआवजे का दावा। एक्सीडेंट या किसी हमले में जख्मी होने पर सरकार देगी इलाज का खर्च और मुआवजा। पीड़ित या उसके परिजन को 15 दिन के भीतर मिलेगी मदद।

फिलहाल ये है व्यवस्था

सीआरपीसी की धारा 357 के तहत भी पीड़ितों को मुआवजा पाने का अधिकार है, लेकिन यह मुआवजा तभी मिलता है जब मामले पर सुनवाई के बाद अदालत आरोपी पर जुर्माना तय करती है। इस प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं और पीड़ित को तत्काल मदद नहीं मिल पाती।

एक्सपर्ट कमेंट्स

बनाना होगा 500 करोड़ का फंड

इंडियन सोसायटी ऑफ विक्टिमोलॉजी ने पिछले दिनों श्रीनगर और लखनऊ में हुई वर्कशॉप में इसका मसौदा तैयार किया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि राज्य सरकारें किस तरह इस स्कीम को लागू करें।

अपराध पीड़ित का यह हक है कि सरकार उसका विस्थापन कराए और उसका जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करे। पश्चिमी देशों में यह व्यवस्था है। हिंदुस्तान में भी अब यह कानून बन गया है। मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में इस व्यवस्था को लागू करने के लिए कम से कम 500 करोड़ रुपए सालाना का फंड बनाना होगा, तब यह कानून कारगर हो पाएगा।""

प्रो.वीवी पांडे,प्रोफेसर,विधि विश्वविद्यालय,लखनऊ

भारतीय न्याय व्यवस्था में अब तक आरोपियों को तो अधिकार मिले हुए हैं, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया में पीड़ितों की भागीदारी अपेक्षाकृत कम है। दुनिया भर में पीड़ितों को उनके अधिकार दिलाए जाने का अभियान चलाया गया और इसके बाद 1985 में विएना उद्घोषणा में पीड़ितों को क्षतिपूर्ति और विस्थापन को भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों ने रजामंदी दी।

भारत में इस दिशा में काम शुरू हुआ और सीआरपीसी में संशोधन के जरिए पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दिए जाने के लिए धारा 357 (ए) में प्रावधान किया गया। आंध्रप्रदेश, दिल्ली, तमिलनाडु में पीड़ितों को अधिकार दिए जाने के लिए राज्य सरकार और गैर सरकारी संगठनों ने मिलकर इस दिशा में काम करना शुरू किया है। फिलहाल बड़ी अड़चन यह है कि अभी जितना कानून है, उसका तो पूरी ईमानदारी से पालन सुनिश्चित हो।""

प्रो. जीएस वाजपेयी, एनएलआईयू

(इंडियन सोसायटी ऑफ विक्टिमोलॉजी के सदस्य हैं, और पीड़ितों को अधिकार दिलाए जाने के लिए बीते डेढ़ दशक से काम कर रहे हैं।)