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हमेशा देश-सेवा और जनसेवा की भावनाओं के वशीभूत होकर कार्य किया है। विभिन्न संस्थाओं और सरकारी बोर्डों, समितियों में रहकर भी जनहित के कामों पर ध्यान दिया है। हरकदम पर पाया है कि भ्रष्टाचार इस देश को भीतर ही भीतर खोखला करता जा रहा है। स्वार्थ के सामने राष्ट्रहित गौण होता जा रहा है। इस टसि को लेकर कलम की ताकत की कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में सन 2003 में कलम कला पाक्षिक अखबार का प्रकाशन आरम्भ किया, जो अनवरत चल रहा है। अब ब्लॉगिंग के जरिए देश भर के नेक और ईमानदार लोगों की टीम बनाकर भ्रष्टाचार मिटाना चाहती हूं।

Sunday, May 15, 2011

कब मिलेगा अपराध पीड़ितों को हक


भोपाल. राजधानी में हर महीने औसतन डेढ़ हजार अपराध होते हैं। इनमें से 40 फीसदी तो ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ितों को तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत होती है। यदि राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में हुए संशोधन के मुताबिक अपराध क्षतिपूर्ति योजना लागू कर दे, तो इन लोगों को तुरंत राहत मिल सकती है।

 
भोपाल. राजधानी में हर महीने औसतन डेढ़ हजार अपराध होते हैं। इनमें से 40 फीसदी तो ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ितों को तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत होती है। यदि राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में हुए संशोधन के मुताबिक अपराध क्षतिपूर्ति योजना लागू कर दे, तो इन लोगों को तुरंत राहत मिल सकती है।भोपाल. राजधानी में हर महीने औसतन डेढ़ हजार अपराध होते हैं। इनमें से 40 फीसदी तो ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ितों को तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत होती है। यदि राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में हुए संशोधन के मुताबिक अपराध क्षतिपूर्ति योजना लागू कर दे, तो इन लोगों को तुरंत राहत मिल सकती है।
संसद ने इस संबंध में कानून भी बना दिया है, लेकिन राज्य सरकार अब भी पीड़ितों का हक दबाए बैठी है। अफसर से लेकर मंत्री तक अपराध पीड़ितों की मदद के सवाल पर गोलमोल जवाब दे रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दंड प्रक्रिया संहिता में हुए संशोधन के बाद राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह केंद्र के साथ मिलकर अपराध पीड़ितों को मदद देने के लिए फंड बनाए, लेकिन प्रदेश सरकार इसमें कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है।

संसद ने सीआरपीसी में संशोधन कर पीड़ितों को तत्काल मदद देने के लिए 357 (ए) धारा जोड़ी है। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकारें अपराध पीड़ितों की मदद के लिए एक फंड बनाएगी। राज्य, केंद्र के साथ समन्वय कर यह योजना तैयार करेंगे, लेकिन मध्यप्रदेश में अब तक इस दिशा में कोई काम शुरू नहीं हुआ है।

खास बात यह है कि पुलिस मुख्यालय ने सीआरपीसी में संशोधन की प्रति सभी जिलों के एसपी को भेज तो दी है, लेकिन खुद मुख्यालय को भी नहीं पता कि पीड़ितों को मुआवजा कैसे दिया जाएगा?

इन्हें जानकारी ही नहीं..

फिलहाल इस फाइल का क्या स्टेटस है, यह दिखवाना पड़ेगा। इसके बाद ही इस विषय में कुछ कहना संभव होगा। मुझे अपराध पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दिए जाने के विषय में जानकारी नहीं है।""

नरोत्तम मिश्रा,कानून मंत्री

इस विषय में अभी कुछ बता पाना संभव नहीं है, मैं इस समय मीटिंग में हूं।""

एके मिश्रा,प्रमुख सचिव, विधि विभाग

सीआरपीसी में यह संशोधन हुआ है, लेकिन अब तक स्कीम बनकर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को प्राप्त नहीं हुई है।""

अनिल कुमार चतुर्वेदी, सदस्य सचिव,राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण

क्या करना होगा

गत मार्च में श्रीनगर में देशभर के कानून विशेषज्ञों और पुलिस अफसरों की वर्कशॉप के बाद सभी राज्य सरकारों को आर्थिक क्षतिपूर्ति योजना लागू करने के लिए मसौदा भेजा गया है। इसके मुताबिक- राज्य सरकारें क्षतिपूर्ति देने हेतु विशेष फंड बनाएं। जिला व तहसील स्तर पर अपराध पीड़ित सहायता सेल बनें, जो पीड़ितों को मार्गदर्शन दें। प्रारंभिक तौर पर गंभीर अपराधों के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दी जाए।

सरकार की दिक्कतें

संशोधन के मुताबिक हर वह व्यक्ति पीड़ित होगा, जिसे शारीरिक-आर्थिक हानि होगी। यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि किन अपराधों के पीड़ितों को मुआवजा दिया जाएगा और कितना। सबसे बड़ी दिक्कत है कि मुआवजा देने के लिए सरकार फंड का बंदोबस्त कहां से करेगी?

योजना से फायदा

हत्या या किसी अन्य अपराध में मौत पर परिजन कर सकेंगे मुआवजे का दावा। एक्सीडेंट या किसी हमले में जख्मी होने पर सरकार देगी इलाज का खर्च और मुआवजा। पीड़ित या उसके परिजन को 15 दिन के भीतर मिलेगी मदद।

फिलहाल ये है व्यवस्था

सीआरपीसी की धारा 357 के तहत भी पीड़ितों को मुआवजा पाने का अधिकार है, लेकिन यह मुआवजा तभी मिलता है जब मामले पर सुनवाई के बाद अदालत आरोपी पर जुर्माना तय करती है। इस प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं और पीड़ित को तत्काल मदद नहीं मिल पाती।

एक्सपर्ट कमेंट्स

बनाना होगा 500 करोड़ का फंड

इंडियन सोसायटी ऑफ विक्टिमोलॉजी ने पिछले दिनों श्रीनगर और लखनऊ में हुई वर्कशॉप में इसका मसौदा तैयार किया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि राज्य सरकारें किस तरह इस स्कीम को लागू करें।

अपराध पीड़ित का यह हक है कि सरकार उसका विस्थापन कराए और उसका जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करे। पश्चिमी देशों में यह व्यवस्था है। हिंदुस्तान में भी अब यह कानून बन गया है। मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में इस व्यवस्था को लागू करने के लिए कम से कम 500 करोड़ रुपए सालाना का फंड बनाना होगा, तब यह कानून कारगर हो पाएगा।""

प्रो.वीवी पांडे,प्रोफेसर,विधि विश्वविद्यालय,लखनऊ

भारतीय न्याय व्यवस्था में अब तक आरोपियों को तो अधिकार मिले हुए हैं, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया में पीड़ितों की भागीदारी अपेक्षाकृत कम है। दुनिया भर में पीड़ितों को उनके अधिकार दिलाए जाने का अभियान चलाया गया और इसके बाद 1985 में विएना उद्घोषणा में पीड़ितों को क्षतिपूर्ति और विस्थापन को भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों ने रजामंदी दी।

भारत में इस दिशा में काम शुरू हुआ और सीआरपीसी में संशोधन के जरिए पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दिए जाने के लिए धारा 357 (ए) में प्रावधान किया गया। आंध्रप्रदेश, दिल्ली, तमिलनाडु में पीड़ितों को अधिकार दिए जाने के लिए राज्य सरकार और गैर सरकारी संगठनों ने मिलकर इस दिशा में काम करना शुरू किया है। फिलहाल बड़ी अड़चन यह है कि अभी जितना कानून है, उसका तो पूरी ईमानदारी से पालन सुनिश्चित हो।""

प्रो. जीएस वाजपेयी, एनएलआईयू

(इंडियन सोसायटी ऑफ विक्टिमोलॉजी के सदस्य हैं, और पीड़ितों को अधिकार दिलाए जाने के लिए बीते डेढ़ दशक से काम कर रहे हैं।)

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