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हमेशा देश-सेवा और जनसेवा की भावनाओं के वशीभूत होकर कार्य किया है। विभिन्न संस्थाओं और सरकारी बोर्डों, समितियों में रहकर भी जनहित के कामों पर ध्यान दिया है। हरकदम पर पाया है कि भ्रष्टाचार इस देश को भीतर ही भीतर खोखला करता जा रहा है। स्वार्थ के सामने राष्ट्रहित गौण होता जा रहा है। इस टसि को लेकर कलम की ताकत की कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में सन 2003 में कलम कला पाक्षिक अखबार का प्रकाशन आरम्भ किया, जो अनवरत चल रहा है। अब ब्लॉगिंग के जरिए देश भर के नेक और ईमानदार लोगों की टीम बनाकर भ्रष्टाचार मिटाना चाहती हूं।

Monday, May 30, 2011

जनाक्रोश और पुलिस की भूमिका: जांच में महत्वपूर्ण होता है अपराधियों की वापसी का रास्ता


        दिनांक 11.3.91 को सुबह अखबार की हैडलाईन्स  देख ही रहा था कि थाना केसरीसिंहपुर, जिला श्रीगंगानगर के थानाधिकारी श्री हुकमसिंह ने दूरभाष पर कहा, सर! कस्बे में गत रात्रि को तीन बड़ी चोरियां हो गयाी हैं। इन वारदातों की जानकारी होने पर कस्बे में लगभग चार-पांच हजार की भीड़ इक_ी हो गई है। कृपया जल्दी पहुंचें। मैं तुरन्त वर्दी पहनकर कस्बा केसरीसिंहपुर पहुंचा। वहां पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। भीड़ भयंकर आक्रोशित थी और पुलिस के विरूद्ध नारे लगा रही थी। थाने का समस्त स्टाफ  सहमा-सहमा सा दिखाई दे रहा था। मुझे देखते ही भीड़ मेरी ओर लपकी और गुस्से का इजहार किया। मैंने भीड़ को समझाकर  घटनास्थल देखने के लिए कहा। चार-पांच हजार लोगों की भीड़ के साथ धक्का-पेल होते हुए मैं मौके पर पहुंचा। पुलिस के विरूद्ध नारेबाजी में ही भीड़ को समझाईश करते हुए घटनास्थल का निरीक्षण किया। भीड़ ने मुल्जिमों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की। मैँने भी ड़ को समझाया कि यदि कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो पुलिस उसको संभालने में लग जाएगी और मुल्जिम बच जाएंगे। अत:तफतीश में थोड़ा समय तो लगेगा ही। भीड़ ने चौबीस घण्टों में  मुल्जिम गिरफ्तार नहीं किए जाने पर आन्दोलन की चेतावनी दी। मैं इस बात पर खुश था कि कम से कम थोड़ा समय तो मिला। बाद की रणनीति पुन: तैयार हो जाएगी और तब तब जिला मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ जाएगा।
      भीड़ थोड़ी शांत हुई। इसके बाद सादा वर्दी में पुलिसकर्मियों को सूचना एकत्रित करने के लिए भेजा गया। पुलिस के परीचित लोगों केा किसी भी प्रकार के संदिग्धों के बारे में सूचना देने के लिए कहा गया। चार-पांच पुलिस दल गठित कर उनको हिदायत दी गई कि कस्बे से बाहर जाने वाले रास्तों के चार-पांच किलोमीटर तक रेकी (इलाके की छानबीन) की जावे। गठित पुलिस दल अपने काम में लग गए। दो-तीन घंटे की रेकी के बाद एक दल ने आकर बताया कि  कस्बे से दो-तीन किलोमीटर दूर रास्ते पर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट पड़े मिले हैं। सूचनामहत्वपूर्ण थी। कस्बे में एक परचून की दुकान में भी नकबजनी की वारदात हुई थी। संभवत: ये बिस्कुट इसी दुकान से चोरी हुए थे। दुकान मालिक को बुलाकर पैकेट दिखाए गए तो उसने अपनी दुकान से चोरी होना बताया। इस पुख्ता जानकारी के बाद यह लगभग तय हो गया था कि चोर वारदात के बाद इसी रास्ते से लौटे हैं। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति ने आकर रिपोर्ट दज्र करवाई कि  उसके घर के सामने चौक में खड़ी ट्रेक्टर-ट्रोली को कोई चोर चोरी करके ले गए हैं। इस सूचना पर इस विचार को बल मिला कि चोर सम्भवत: ट्रेक्टर में आए थे और जाते समय ट्रॉली को उसमें जोड़कर उसमें चोरी का सामान भरकर अपने साथ ले गए। तीन दुकानों का सामान बगैर किसी साधन के ले जाया जाना सम्भव नहीं था।
     थाने में विचार मनन चल ही रहा था कि एक पुलिस दल ने आकर सूचना दी कि कस्बे में स्थित एक फैक्ट्री के चौकीदार ने बताया कि रात को करीब दो बजे जब वह फैक्ट्री के गेट पर था तो वहां से एक ट्रेक्टर गुजरा था। उस ट्रेक्टर में आठ-दस आदमी बैठे थे एवं ट्रोली में सामान भरा हुआ था। ट्रेक्टर की आवाज काफी भारी थी। सम्भवत: वह आयशर रहा होगा। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उसी रास्तें में आगे जाकर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट मिले थे, जिनकी शिनाख्त हो चुकी थी। अत: यह स्पष्टत: हो गया कि चोर टे्रक्टर लाए थे और घर के सामने खड़ी ट्रोली को ट्रेक्टर के साथ जोड़कर चोरी का सामान भरकर उसी रास्ते से गए थे। जिन तीन दुकानों में चोरी हुई थी, उनमें से एक दुकान से कपड़े का सामान, दूसरी दुकान से परचून का सामान, तीसरी दुकान से रेडियो, टीवी, इत्यादि चोरी हुए थे। इसके साथ इस बात को बल मिला कि चोर शाम ढले बाजार में आ गए होंगे और ट्रेक्टर कहीं पर ख्ड़ा करके बाजार में रेकी की होगी।
     कस्बें छोड़े गए पुलिसकर्मियों को एवं सम्पर्क सूत्रों को इस सूचना को और आगे विकसित करने के निर्देश दिए गए। करीब चार-पांच बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जब वह करीब सात बजे अपनी दुकान बंद करके घर जा रहा था, उस समय उसने एक ढाबे के सामने ट्रेक्टर खड़ा देखा था। उस पर आठ दस आदमी बैठे थे। वे आपस में बातें कर रहे थे। देखने में ग्रामीण परिवेश के लग रहे थे। पुलिस दल को भेजकर आस पास की दुकानों व ढाबों से पूछताछ करवाई गई। एक ढाबा मालिक ने बताया कि उसके ढाबे में रात्रि करीब नौ बजे दस लोगों ने खाना खाया था। रोटियां सथी अपने साथ लाए थे। रोटियां ऐ पुराने कपड़े में बंधी हुई थी। उन्होंने ढाबे से मीट की दस प्लेटें लेकर खाना खाया था। इस सूचना पर यह स्पष्ट हो गया कि वे व्यक्ति ठेठ गांव के थे। क्योंकि अक्सर गांव के लोग जब शहर में आते हैं तो खाना उइसी तरह कपड़े में बांधकर लाते हैं एवं कहीं पेड़ की छांव में या अन्य स्थान पर बैठकर खाना खा लेते हैं। सब्जी नहीं होती है तो किसी ढाबे से ले लेते हैँ, नहीं तो बिना सब्जी के ही खा लेते हैं। जाने के रास्ते(Way of Return)की ओर बीस-पच्चीस किलोमीटर क्षेत्र के गांवों की मौजेवार (Village Crime Note Books)  निकालकर बदमाशों के रिकॉर्ड की छानबीन शुरू की गई। हालांकि कार्रवाई हवा में तीर चलाने जैसी थी लेकिन जनता के चौबीस घण्टे के अल्टीमेटम के बाद जनाक्रोश को देखते हुए भरपूर प्रयास किया जाना आवश्यक था।
     अब तक की तफतीश व संदिग्धों के बारे में सम्पर्क सूत्रों को बताया गया और तफतीश को आगे बढाया गया।      
 ...लगभग सात बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि ट्रेक्टर पर सवार संदिग्ध लोगों ने जिस ढाबे पर खाना खाया था उसके पास खड़े एक टैम्पो चालक को उनमें से एक व्यक्ति ने गांव संगतपुरा में चलने के लिए कहा था। रात्रि के समय में जिले में उग्रवादी घटना के मद्दे नजर टैम्पो चालक ने वहां जाने से मना कर दिया था। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी। गांव संगतपुरा की मौजेवार को निकालकर  बदमाशों की सूची बनाई गई। थोड़ी देर बाद एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जिस व्यक्ति ने टैम्पो चालक से बात की थी उस संदिग्ध व्यक्ति को उसने भी देखा था। वह व्यक्ति तीन-चार महीने पहले एक समाज विशेष की किसी औरत को लेकर बैठी समाज की पंचायत में एक पक्ष की ओर से बोल रहा था। उसकी रिश्तेदारी गांव संगतपुरा में थी एवं वह गांव 3 टी में सुरजीत सिंह के घर ब्याही हुई थी।
       3  टी की मौजेवार देखने से पता चला कि सुरजीत सिंह का कई नकबजनियों में चालान हुआ था। एक पुलिस टीम ग्राम संगतपुरा में भेजी गई जिसने सुरजीत सिंह के ससुर से सुरजीत सिंह के बारे में पूछताछ की तो उसने कई दिनों से उस गांव में उसका आना नहीं बताया। ग्राम 3 टी में सुरजीत के घर पर उसके ससुर को साथ लेकर पुलिस दल ने रात्रि करीब बारह बजे छापा मारा। बड़ी ऊंची आवाज में डैक बज रहा था। बार-बार दरवाजा खटखटाने के बावजूद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस दल ने चारों ओर से घेरा डालकर पुलिस कमाण्डो को दीवार पर चढाकर अन्दर से मुख्य दरवाजा खोलने के लिए कहा। दरवाजा खुलते ही पांच-सात लोगों के जागने पर पूछा गया तो पुलिस पार्टी को देखकर वे हड़बड़ाकर भागने लगे। उनको रोक कर भागने का कारण पूछा तो सभी के मुंह से निकला गलती हो गई। घर की तलाशी लेने पर दुकानों से चोरी गया पूरा सामान मिल गया एवं आठ व्यक्तियों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया। सारे घर की तलाशी ली गई तो उस दिन पिछली रात हुई चोरी के अतिरिक्त  इलाके में हुई आठ-दस अन्य चोरियों का सामान भी उनके घर में मिल गया, जिसे धारा 102 द.प्र.सं. के तहत जब्त किया गया। ट्रेक्टर व ट्रोली के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने करीब एक घंटा पहले घमूड़वाली क्षेत्र में गांव 36 एलएनपी में मोहन सिंह के घर जाना बताया। मोहनसिंह व सुरजीत सिंह आपस में रिश्तेदार हैं।  वायरलैस पर घमूड़वाली थानाधिकारी श्री राजेन्द्र सिंह को सूचना दी गई कि 36 एलएनपी में मोहनसिं के घर जाकर ट्रेक्टर आने का इंतजार करे। करीब एक घंटे बाद ट्रेक्टर वहां पहुंचा तो मोहनसिंह व एक अन्य नकबजन को ट्रेक्टर ट्रोली सहित गिरफ्तार कर लिया गया।
       इस प्रकार कड़ी से कड़ी जोड़कर एक बहुत बड़ी वारदात मात्र अठारह-बीस घंटे में खोलने में  पुलिस को कामयाबी मिली। इस कामयाबी में वापसी का रास्ता (Way of retreat) सिद्धांत काम आया।                

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