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हमेशा देश-सेवा और जनसेवा की भावनाओं के वशीभूत होकर कार्य किया है। विभिन्न संस्थाओं और सरकारी बोर्डों, समितियों में रहकर भी जनहित के कामों पर ध्यान दिया है। हरकदम पर पाया है कि भ्रष्टाचार इस देश को भीतर ही भीतर खोखला करता जा रहा है। स्वार्थ के सामने राष्ट्रहित गौण होता जा रहा है। इस टसि को लेकर कलम की ताकत की कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में सन 2003 में कलम कला पाक्षिक अखबार का प्रकाशन आरम्भ किया, जो अनवरत चल रहा है। अब ब्लॉगिंग के जरिए देश भर के नेक और ईमानदार लोगों की टीम बनाकर भ्रष्टाचार मिटाना चाहती हूं।

Monday, April 25, 2011

तहकीकात


तहकीकात

 जहाँ पर वो निरन्तर भूख की फ सलें उगातें हैं,
 हमारे मुल्क में ऐसे कई लंबे अहाते हैं।

 जरूरत है कि तहकीकात हो ईमानदारी से,
 सभी अपराध कुछ न कुछ गवाही छोड़ जाते हैं।

 हमारे घर बदल डाले गये श्मशानों में यारों,
 जहाँ हम रोज मुर्दा हो चुके रिश्ते जलाते हैं।

 हुआ इतिहास का अनुवाद इतनी बेईमानी से,
 जहाँ वाजिब था मातम हम वहाँ खुशियाँ मानते हैं।

हमारी नींद के दुश्मन सवालों के जवाबों में,
हमारे पास सुबह दोगले अखबार आतें हैं।

इन्हें क्या आदमी गर आज भी सड़कों पे सोता है,
इन्हें कुछ मत कहो ये तो फ कत मंदिर बनाते हैं।
(विचित्रा गुप्ता की लिखी और मेरी पसंद की एक कविता)

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