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हमेशा देश-सेवा और जनसेवा की भावनाओं के वशीभूत होकर कार्य किया है। विभिन्न संस्थाओं और सरकारी बोर्डों, समितियों में रहकर भी जनहित के कामों पर ध्यान दिया है। हरकदम पर पाया है कि भ्रष्टाचार इस देश को भीतर ही भीतर खोखला करता जा रहा है। स्वार्थ के सामने राष्ट्रहित गौण होता जा रहा है। इस टसि को लेकर कलम की ताकत की कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में सन 2003 में कलम कला पाक्षिक अखबार का प्रकाशन आरम्भ किया, जो अनवरत चल रहा है। अब ब्लॉगिंग के जरिए देश भर के नेक और ईमानदार लोगों की टीम बनाकर भ्रष्टाचार मिटाना चाहती हूं।

Monday, May 30, 2011

जनाक्रोश और पुलिस की भूमिका: जांच में महत्वपूर्ण होता है अपराधियों की वापसी का रास्ता


        दिनांक 11.3.91 को सुबह अखबार की हैडलाईन्स  देख ही रहा था कि थाना केसरीसिंहपुर, जिला श्रीगंगानगर के थानाधिकारी श्री हुकमसिंह ने दूरभाष पर कहा, सर! कस्बे में गत रात्रि को तीन बड़ी चोरियां हो गयाी हैं। इन वारदातों की जानकारी होने पर कस्बे में लगभग चार-पांच हजार की भीड़ इक_ी हो गई है। कृपया जल्दी पहुंचें। मैं तुरन्त वर्दी पहनकर कस्बा केसरीसिंहपुर पहुंचा। वहां पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। भीड़ भयंकर आक्रोशित थी और पुलिस के विरूद्ध नारे लगा रही थी। थाने का समस्त स्टाफ  सहमा-सहमा सा दिखाई दे रहा था। मुझे देखते ही भीड़ मेरी ओर लपकी और गुस्से का इजहार किया। मैंने भीड़ को समझाकर  घटनास्थल देखने के लिए कहा। चार-पांच हजार लोगों की भीड़ के साथ धक्का-पेल होते हुए मैं मौके पर पहुंचा। पुलिस के विरूद्ध नारेबाजी में ही भीड़ को समझाईश करते हुए घटनास्थल का निरीक्षण किया। भीड़ ने मुल्जिमों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की। मैँने भी ड़ को समझाया कि यदि कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो पुलिस उसको संभालने में लग जाएगी और मुल्जिम बच जाएंगे। अत:तफतीश में थोड़ा समय तो लगेगा ही। भीड़ ने चौबीस घण्टों में  मुल्जिम गिरफ्तार नहीं किए जाने पर आन्दोलन की चेतावनी दी। मैं इस बात पर खुश था कि कम से कम थोड़ा समय तो मिला। बाद की रणनीति पुन: तैयार हो जाएगी और तब तब जिला मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ जाएगा।
      भीड़ थोड़ी शांत हुई। इसके बाद सादा वर्दी में पुलिसकर्मियों को सूचना एकत्रित करने के लिए भेजा गया। पुलिस के परीचित लोगों केा किसी भी प्रकार के संदिग्धों के बारे में सूचना देने के लिए कहा गया। चार-पांच पुलिस दल गठित कर उनको हिदायत दी गई कि कस्बे से बाहर जाने वाले रास्तों के चार-पांच किलोमीटर तक रेकी (इलाके की छानबीन) की जावे। गठित पुलिस दल अपने काम में लग गए। दो-तीन घंटे की रेकी के बाद एक दल ने आकर बताया कि  कस्बे से दो-तीन किलोमीटर दूर रास्ते पर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट पड़े मिले हैं। सूचनामहत्वपूर्ण थी। कस्बे में एक परचून की दुकान में भी नकबजनी की वारदात हुई थी। संभवत: ये बिस्कुट इसी दुकान से चोरी हुए थे। दुकान मालिक को बुलाकर पैकेट दिखाए गए तो उसने अपनी दुकान से चोरी होना बताया। इस पुख्ता जानकारी के बाद यह लगभग तय हो गया था कि चोर वारदात के बाद इसी रास्ते से लौटे हैं। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति ने आकर रिपोर्ट दज्र करवाई कि  उसके घर के सामने चौक में खड़ी ट्रेक्टर-ट्रोली को कोई चोर चोरी करके ले गए हैं। इस सूचना पर इस विचार को बल मिला कि चोर सम्भवत: ट्रेक्टर में आए थे और जाते समय ट्रॉली को उसमें जोड़कर उसमें चोरी का सामान भरकर अपने साथ ले गए। तीन दुकानों का सामान बगैर किसी साधन के ले जाया जाना सम्भव नहीं था।
     थाने में विचार मनन चल ही रहा था कि एक पुलिस दल ने आकर सूचना दी कि कस्बे में स्थित एक फैक्ट्री के चौकीदार ने बताया कि रात को करीब दो बजे जब वह फैक्ट्री के गेट पर था तो वहां से एक ट्रेक्टर गुजरा था। उस ट्रेक्टर में आठ-दस आदमी बैठे थे एवं ट्रोली में सामान भरा हुआ था। ट्रेक्टर की आवाज काफी भारी थी। सम्भवत: वह आयशर रहा होगा। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उसी रास्तें में आगे जाकर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट मिले थे, जिनकी शिनाख्त हो चुकी थी। अत: यह स्पष्टत: हो गया कि चोर टे्रक्टर लाए थे और घर के सामने खड़ी ट्रोली को ट्रेक्टर के साथ जोड़कर चोरी का सामान भरकर उसी रास्ते से गए थे। जिन तीन दुकानों में चोरी हुई थी, उनमें से एक दुकान से कपड़े का सामान, दूसरी दुकान से परचून का सामान, तीसरी दुकान से रेडियो, टीवी, इत्यादि चोरी हुए थे। इसके साथ इस बात को बल मिला कि चोर शाम ढले बाजार में आ गए होंगे और ट्रेक्टर कहीं पर ख्ड़ा करके बाजार में रेकी की होगी।
     कस्बें छोड़े गए पुलिसकर्मियों को एवं सम्पर्क सूत्रों को इस सूचना को और आगे विकसित करने के निर्देश दिए गए। करीब चार-पांच बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जब वह करीब सात बजे अपनी दुकान बंद करके घर जा रहा था, उस समय उसने एक ढाबे के सामने ट्रेक्टर खड़ा देखा था। उस पर आठ दस आदमी बैठे थे। वे आपस में बातें कर रहे थे। देखने में ग्रामीण परिवेश के लग रहे थे। पुलिस दल को भेजकर आस पास की दुकानों व ढाबों से पूछताछ करवाई गई। एक ढाबा मालिक ने बताया कि उसके ढाबे में रात्रि करीब नौ बजे दस लोगों ने खाना खाया था। रोटियां सथी अपने साथ लाए थे। रोटियां ऐ पुराने कपड़े में बंधी हुई थी। उन्होंने ढाबे से मीट की दस प्लेटें लेकर खाना खाया था। इस सूचना पर यह स्पष्ट हो गया कि वे व्यक्ति ठेठ गांव के थे। क्योंकि अक्सर गांव के लोग जब शहर में आते हैं तो खाना उइसी तरह कपड़े में बांधकर लाते हैं एवं कहीं पेड़ की छांव में या अन्य स्थान पर बैठकर खाना खा लेते हैं। सब्जी नहीं होती है तो किसी ढाबे से ले लेते हैँ, नहीं तो बिना सब्जी के ही खा लेते हैं। जाने के रास्ते(Way of Return)की ओर बीस-पच्चीस किलोमीटर क्षेत्र के गांवों की मौजेवार (Village Crime Note Books)  निकालकर बदमाशों के रिकॉर्ड की छानबीन शुरू की गई। हालांकि कार्रवाई हवा में तीर चलाने जैसी थी लेकिन जनता के चौबीस घण्टे के अल्टीमेटम के बाद जनाक्रोश को देखते हुए भरपूर प्रयास किया जाना आवश्यक था।
     अब तक की तफतीश व संदिग्धों के बारे में सम्पर्क सूत्रों को बताया गया और तफतीश को आगे बढाया गया।    
 ...लगभग सात बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि ट्रेक्टर पर सवार संदिग्ध लोगों ने जिस ढाबे पर खाना खाया था उसके पास खड़े एक टैम्पो चालक को उनमें से एक व्यक्ति ने गांव संगतपुरा में चलने के लिए कहा था। रात्रि के समय में जिले में उग्रवादी घटना के मद्दे नजर टैम्पो चालक ने वहां जाने से मना कर दिया था। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी। गांव संगतपुरा की मौजेवार को निकालकर  बदमाशों की सूची बनाई गई। थोड़ी देर बाद एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जिस व्यक्ति ने टैम्पो चालक से बात की थी उस संदिग्ध व्यक्ति को उसने भी देखा था। वह व्यक्ति तीन-चार महीने पहले एक समाज विशेष की किसी औरत को लेकर बैठी समाज की पंचायत में एक पक्ष की ओर से बोल रहा था। उसकी रिश्तेदारी गांव संगतपुरा में थी एवं वह गांव 3 टी में सुरजीत सिंह के घर ब्याही हुई थी।
       3  टी की मौजेवार देखने से पता चला कि सुरजीत सिंह का कई नकबजनियों में चालान हुआ था। एक पुलिस टीम ग्राम संगतपुरा में भेजी गई जिसने सुरजीत सिंह के ससुर से सुरजीत सिंह के बारे में पूछताछ की तो उसने कई दिनों से उस गांव में उसका आना नहीं बताया। ग्राम 3 टी में सुरजीत के घर पर उसके ससुर को साथ लेकर पुलिस दल ने रात्रि करीब बारह बजे छापा मारा। बड़ी ऊंची आवाज में डैक बज रहा था। बार-बार दरवाजा खटखटाने के बावजूद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस दल ने चारों ओर से घेरा डालकर पुलिस कमाण्डो को दीवार पर चढाकर अन्दर से मुख्य दरवाजा खोलने के लिए कहा। दरवाजा खुलते ही पांच-सात लोगों के जागने पर पूछा गया तो पुलिस पार्टी को देखकर वे हड़बड़ाकर भागने लगे। उनको रोक कर भागने का कारण पूछा तो सभी के मुंह से निकला गलती हो गई। घर की तलाशी लेने पर दुकानों से चोरी गया पूरा सामान मिल गया एवं आठ व्यक्तियों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया। सारे घर की तलाशी ली गई तो उस दिन पिछली रात हुई चोरी के अतिरिक्त  इलाके में हुई आठ-दस अन्य चोरियों का सामान भी उनके घर में मिल गया, जिसे धारा 102 द.प्र.सं. के तहत जब्त किया गया। ट्रेक्टर व ट्रोली के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने करीब एक घंटा पहले घमूड़वाली क्षेत्र में गांव 36 एलएनपी में मोहन सिंह के घर जाना बताया। मोहनसिंह व सुरजीत सिंह आपस में रिश्तेदार हैं।  वायरलैस पर घमूड़वाली थानाधिकारी श्री राजेन्द्र सिंह को सूचना दी गई कि 36 एलएनपी में मोहनसिं के घर जाकर ट्रेक्टर आने का इंतजार करे। करीब एक घंटे बाद ट्रेक्टर वहां पहुंचा तो मोहनसिंह व एक अन्य नकबजन को ट्रेक्टर ट्रोली सहित गिरफ्तार कर लिया गया।
       इस प्रकार कड़ी से कड़ी जोड़कर एक बहुत बड़ी वारदात मात्र अठारह-बीस घंटे में खोलने में  पुलिस को कामयाबी मिली। इस कामयाबी में वापसी का रास्ता (Way of retreat) सिद्धांत काम आया।                

जनाक्रोश और पुलिस की भूमिका: जांच में महत्वपूर्ण होता है अपराधियों की वापसी का रास्ता


        दिनांक 11.3.91 को सुबह अखबार की हैडलाईन्स  देख ही रहा था कि थाना केसरीसिंहपुर, जिला श्रीगंगानगर के थानाधिकारी श्री हुकमसिंह ने दूरभाष पर कहा, सर! कस्बे में गत रात्रि को तीन बड़ी चोरियां हो गयाी हैं। इन वारदातों की जानकारी होने पर कस्बे में लगभग चार-पांच हजार की भीड़ इक_ी हो गई है। कृपया जल्दी पहुंचें। मैं तुरन्त वर्दी पहनकर कस्बा केसरीसिंहपुर पहुंचा। वहां पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। भीड़ भयंकर आक्रोशित थी और पुलिस के विरूद्ध नारे लगा रही थी। थाने का समस्त स्टाफ  सहमा-सहमा सा दिखाई दे रहा था। मुझे देखते ही भीड़ मेरी ओर लपकी और गुस्से का इजहार किया। मैंने भीड़ को समझाकर  घटनास्थल देखने के लिए कहा। चार-पांच हजार लोगों की भीड़ के साथ धक्का-पेल होते हुए मैं मौके पर पहुंचा। पुलिस के विरूद्ध नारेबाजी में ही भीड़ को समझाईश करते हुए घटनास्थल का निरीक्षण किया। भीड़ ने मुल्जिमों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की। मैँने भी ड़ को समझाया कि यदि कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो पुलिस उसको संभालने में लग जाएगी और मुल्जिम बच जाएंगे। अत:तफतीश में थोड़ा समय तो लगेगा ही। भीड़ ने चौबीस घण्टों में  मुल्जिम गिरफ्तार नहीं किए जाने पर आन्दोलन की चेतावनी दी। मैं इस बात पर खुश था कि कम से कम थोड़ा समय तो मिला। बाद की रणनीति पुन: तैयार हो जाएगी और तब तब जिला मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ जाएगा।
      भीड़ थोड़ी शांत हुई। इसके बाद सादा वर्दी में पुलिसकर्मियों को सूचना एकत्रित करने के लिए भेजा गया। पुलिस के परीचित लोगों केा किसी भी प्रकार के संदिग्धों के बारे में सूचना देने के लिए कहा गया। चार-पांच पुलिस दल गठित कर उनको हिदायत दी गई कि कस्बे से बाहर जाने वाले रास्तों के चार-पांच किलोमीटर तक रेकी (इलाके की छानबीन) की जावे। गठित पुलिस दल अपने काम में लग गए। दो-तीन घंटे की रेकी के बाद एक दल ने आकर बताया कि  कस्बे से दो-तीन किलोमीटर दूर रास्ते पर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट पड़े मिले हैं। सूचनामहत्वपूर्ण थी। कस्बे में एक परचून की दुकान में भी नकबजनी की वारदात हुई थी। संभवत: ये बिस्कुट इसी दुकान से चोरी हुए थे। दुकान मालिक को बुलाकर पैकेट दिखाए गए तो उसने अपनी दुकान से चोरी होना बताया। इस पुख्ता जानकारी के बाद यह लगभग तय हो गया था कि चोर वारदात के बाद इसी रास्ते से लौटे हैं। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति ने आकर रिपोर्ट दज्र करवाई कि  उसके घर के सामने चौक में खड़ी ट्रेक्टर-ट्रोली को कोई चोर चोरी करके ले गए हैं। इस सूचना पर इस विचार को बल मिला कि चोर सम्भवत: ट्रेक्टर में आए थे और जाते समय ट्रॉली को उसमें जोड़कर उसमें चोरी का सामान भरकर अपने साथ ले गए। तीन दुकानों का सामान बगैर किसी साधन के ले जाया जाना सम्भव नहीं था।
     थाने में विचार मनन चल ही रहा था कि एक पुलिस दल ने आकर सूचना दी कि कस्बे में स्थित एक फैक्ट्री के चौकीदार ने बताया कि रात को करीब दो बजे जब वह फैक्ट्री के गेट पर था तो वहां से एक ट्रेक्टर गुजरा था। उस ट्रेक्टर में आठ-दस आदमी बैठे थे एवं ट्रोली में सामान भरा हुआ था। ट्रेक्टर की आवाज काफी भारी थी। सम्भवत: वह आयशर रहा होगा। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उसी रास्तें में आगे जाकर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट मिले थे, जिनकी शिनाख्त हो चुकी थी। अत: यह स्पष्टत: हो गया कि चोर टे्रक्टर लाए थे और घर के सामने खड़ी ट्रोली को ट्रेक्टर के साथ जोड़कर चोरी का सामान भरकर उसी रास्ते से गए थे। जिन तीन दुकानों में चोरी हुई थी, उनमें से एक दुकान से कपड़े का सामान, दूसरी दुकान से परचून का सामान, तीसरी दुकान से रेडियो, टीवी, इत्यादि चोरी हुए थे। इसके साथ इस बात को बल मिला कि चोर शाम ढले बाजार में आ गए होंगे और ट्रेक्टर कहीं पर ख्ड़ा करके बाजार में रेकी की होगी।
     कस्बें छोड़े गए पुलिसकर्मियों को एवं सम्पर्क सूत्रों को इस सूचना को और आगे विकसित करने के निर्देश दिए गए। करीब चार-पांच बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जब वह करीब सात बजे अपनी दुकान बंद करके घर जा रहा था, उस समय उसने एक ढाबे के सामने ट्रेक्टर खड़ा देखा था। उस पर आठ दस आदमी बैठे थे। वे आपस में बातें कर रहे थे। देखने में ग्रामीण परिवेश के लग रहे थे। पुलिस दल को भेजकर आस पास की दुकानों व ढाबों से पूछताछ करवाई गई। एक ढाबा मालिक ने बताया कि उसके ढाबे में रात्रि करीब नौ बजे दस लोगों ने खाना खाया था। रोटियां सथी अपने साथ लाए थे। रोटियां ऐ पुराने कपड़े में बंधी हुई थी। उन्होंने ढाबे से मीट की दस प्लेटें लेकर खाना खाया था। इस सूचना पर यह स्पष्ट हो गया कि वे व्यक्ति ठेठ गांव के थे। क्योंकि अक्सर गांव के लोग जब शहर में आते हैं तो खाना उइसी तरह कपड़े में बांधकर लाते हैं एवं कहीं पेड़ की छांव में या अन्य स्थान पर बैठकर खाना खा लेते हैं। सब्जी नहीं होती है तो किसी ढाबे से ले लेते हैँ, नहीं तो बिना सब्जी के ही खा लेते हैं। जाने के रास्ते(Way of Return)की ओर बीस-पच्चीस किलोमीटर क्षेत्र के गांवों की मौजेवार (Village Crime Note Books)  निकालकर बदमाशों के रिकॉर्ड की छानबीन शुरू की गई। हालांकि कार्रवाई हवा में तीर चलाने जैसी थी लेकिन जनता के चौबीस घण्टे के अल्टीमेटम के बाद जनाक्रोश को देखते हुए भरपूर प्रयास किया जाना आवश्यक था।
     अब तक की तफतीश व संदिग्धों के बारे में सम्पर्क सूत्रों को बताया गया और तफतीश को आगे बढाया गया।    
 ...लगभग सात बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि ट्रेक्टर पर सवार संदिग्ध लोगों ने जिस ढाबे पर खाना खाया था उसके पास खड़े एक टैम्पो चालक को उनमें से एक व्यक्ति ने गांव संगतपुरा में चलने के लिए कहा था। रात्रि के समय में जिले में उग्रवादी घटना के मद्दे नजर टैम्पो चालक ने वहां जाने से मना कर दिया था। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी। गांव संगतपुरा की मौजेवार को निकालकर  बदमाशों की सूची बनाई गई। थोड़ी देर बाद एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जिस व्यक्ति ने टैम्पो चालक से बात की थी उस संदिग्ध व्यक्ति को उसने भी देखा था। वह व्यक्ति तीन-चार महीने पहले एक समाज विशेष की किसी औरत को लेकर बैठी समाज की पंचायत में एक पक्ष की ओर से बोल रहा था। उसकी रिश्तेदारी गांव संगतपुरा में थी एवं वह गांव 3 टी में सुरजीत सिंह के घर ब्याही हुई थी।
       3  टी की मौजेवार देखने से पता चला कि सुरजीत सिंह का कई नकबजनियों में चालान हुआ था। एक पुलिस टीम ग्राम संगतपुरा में भेजी गई जिसने सुरजीत सिंह के ससुर से सुरजीत सिंह के बारे में पूछताछ की तो उसने कई दिनों से उस गांव में उसका आना नहीं बताया। ग्राम 3 टी में सुरजीत के घर पर उसके ससुर को साथ लेकर पुलिस दल ने रात्रि करीब बारह बजे छापा मारा। बड़ी ऊंची आवाज में डैक बज रहा था। बार-बार दरवाजा खटखटाने के बावजूद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस दल ने चारों ओर से घेरा डालकर पुलिस कमाण्डो को दीवार पर चढाकर अन्दर से मुख्य दरवाजा खोलने के लिए कहा। दरवाजा खुलते ही पांच-सात लोगों के जागने पर पूछा गया तो पुलिस पार्टी को देखकर वे हड़बड़ाकर भागने लगे। उनको रोक कर भागने का कारण पूछा तो सभी के मुंह से निकला गलती हो गई। घर की तलाशी लेने पर दुकानों से चोरी गया पूरा सामान मिल गया एवं आठ व्यक्तियों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया। सारे घर की तलाशी ली गई तो उस दिन पिछली रात हुई चोरी के अतिरिक्त  इलाके में हुई आठ-दस अन्य चोरियों का सामान भी उनके घर में मिल गया, जिसे धारा 102 द.प्र.सं. के तहत जब्त किया गया। ट्रेक्टर व ट्रोली के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने करीब एक घंटा पहले घमूड़वाली क्षेत्र में गांव 36 एलएनपी में मोहन सिंह के घर जाना बताया। मोहनसिंह व सुरजीत सिंह आपस में रिश्तेदार हैं।  वायरलैस पर घमूड़वाली थानाधिकारी श्री राजेन्द्र सिंह को सूचना दी गई कि 36 एलएनपी में मोहनसिं के घर जाकर ट्रेक्टर आने का इंतजार करे। करीब एक घंटे बाद ट्रेक्टर वहां पहुंचा तो मोहनसिंह व एक अन्य नकबजन को ट्रेक्टर ट्रोली सहित गिरफ्तार कर लिया गया।
       इस प्रकार कड़ी से कड़ी जोड़कर एक बहुत बड़ी वारदात मात्र अठारह-बीस घंटे में खोलने में  पुलिस को कामयाबी मिली। इस कामयाबी में वापसी का रास्ता (Way of retreat) सिद्धांत काम आया।                

जनाक्रोश और पुलिस की भूमिका: जांच में महत्वपूर्ण होता है अपराधियों की वापसी का रास्ता


        दिनांक 11.3.91 को सुबह अखबार की हैडलाईन्स  देख ही रहा था कि थाना केसरीसिंहपुर, जिला श्रीगंगानगर के थानाधिकारी श्री हुकमसिंह ने दूरभाष पर कहा, सर! कस्बे में गत रात्रि को तीन बड़ी चोरियां हो गयाी हैं। इन वारदातों की जानकारी होने पर कस्बे में लगभग चार-पांच हजार की भीड़ इक_ी हो गई है। कृपया जल्दी पहुंचें। मैं तुरन्त वर्दी पहनकर कस्बा केसरीसिंहपुर पहुंचा। वहां पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। भीड़ भयंकर आक्रोशित थी और पुलिस के विरूद्ध नारे लगा रही थी। थाने का समस्त स्टाफ  सहमा-सहमा सा दिखाई दे रहा था। मुझे देखते ही भीड़ मेरी ओर लपकी और गुस्से का इजहार किया। मैंने भीड़ को समझाकर  घटनास्थल देखने के लिए कहा। चार-पांच हजार लोगों की भीड़ के साथ धक्का-पेल होते हुए मैं मौके पर पहुंचा। पुलिस के विरूद्ध नारेबाजी में ही भीड़ को समझाईश करते हुए घटनास्थल का निरीक्षण किया। भीड़ ने मुल्जिमों की शीघ्र गिरफ्तारी की मांग की। मैँने भी ड़ को समझाया कि यदि कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो पुलिस उसको संभालने में लग जाएगी और मुल्जिम बच जाएंगे। अत:तफतीश में थोड़ा समय तो लगेगा ही। भीड़ ने चौबीस घण्टों में  मुल्जिम गिरफ्तार नहीं किए जाने पर आन्दोलन की चेतावनी दी। मैं इस बात पर खुश था कि कम से कम थोड़ा समय तो मिला। बाद की रणनीति पुन: तैयार हो जाएगी और तब तब जिला मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ जाएगा।
      भीड़ थोड़ी शांत हुई। इसके बाद सादा वर्दी में पुलिसकर्मियों को सूचना एकत्रित करने के लिए भेजा गया। पुलिस के परीचित लोगों केा किसी भी प्रकार के संदिग्धों के बारे में सूचना देने के लिए कहा गया। चार-पांच पुलिस दल गठित कर उनको हिदायत दी गई कि कस्बे से बाहर जाने वाले रास्तों के चार-पांच किलोमीटर तक रेकी (इलाके की छानबीन) की जावे। गठित पुलिस दल अपने काम में लग गए। दो-तीन घंटे की रेकी के बाद एक दल ने आकर बताया कि  कस्बे से दो-तीन किलोमीटर दूर रास्ते पर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट पड़े मिले हैं। सूचनामहत्वपूर्ण थी। कस्बे में एक परचून की दुकान में भी नकबजनी की वारदात हुई थी। संभवत: ये बिस्कुट इसी दुकान से चोरी हुए थे। दुकान मालिक को बुलाकर पैकेट दिखाए गए तो उसने अपनी दुकान से चोरी होना बताया। इस पुख्ता जानकारी के बाद यह लगभग तय हो गया था कि चोर वारदात के बाद इसी रास्ते से लौटे हैं। थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति ने आकर रिपोर्ट दज्र करवाई कि  उसके घर के सामने चौक में खड़ी ट्रेक्टर-ट्रोली को कोई चोर चोरी करके ले गए हैं। इस सूचना पर इस विचार को बल मिला कि चोर सम्भवत: ट्रेक्टर में आए थे और जाते समय ट्रॉली को उसमें जोड़कर उसमें चोरी का सामान भरकर अपने साथ ले गए। तीन दुकानों का सामान बगैर किसी साधन के ले जाया जाना सम्भव नहीं था।
     थाने में विचार मनन चल ही रहा था कि एक पुलिस दल ने आकर सूचना दी कि कस्बे में स्थित एक फैक्ट्री के चौकीदार ने बताया कि रात को करीब दो बजे जब वह फैक्ट्री के गेट पर था तो वहां से एक ट्रेक्टर गुजरा था। उस ट्रेक्टर में आठ-दस आदमी बैठे थे एवं ट्रोली में सामान भरा हुआ था। ट्रेक्टर की आवाज काफी भारी थी। सम्भवत: वह आयशर रहा होगा। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि उसी रास्तें में आगे जाकर बिस्कुट के दो-तीन पैकेट मिले थे, जिनकी शिनाख्त हो चुकी थी। अत: यह स्पष्टत: हो गया कि चोर टे्रक्टर लाए थे और घर के सामने खड़ी ट्रोली को ट्रेक्टर के साथ जोड़कर चोरी का सामान भरकर उसी रास्ते से गए थे। जिन तीन दुकानों में चोरी हुई थी, उनमें से एक दुकान से कपड़े का सामान, दूसरी दुकान से परचून का सामान, तीसरी दुकान से रेडियो, टीवी, इत्यादि चोरी हुए थे। इसके साथ इस बात को बल मिला कि चोर शाम ढले बाजार में आ गए होंगे और ट्रेक्टर कहीं पर ख्ड़ा करके बाजार में रेकी की होगी।
     कस्बें छोड़े गए पुलिसकर्मियों को एवं सम्पर्क सूत्रों को इस सूचना को और आगे विकसित करने के निर्देश दिए गए। करीब चार-पांच बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जब वह करीब सात बजे अपनी दुकान बंद करके घर जा रहा था, उस समय उसने एक ढाबे के सामने ट्रेक्टर खड़ा देखा था। उस पर आठ दस आदमी बैठे थे। वे आपस में बातें कर रहे थे। देखने में ग्रामीण परिवेश के लग रहे थे। पुलिस दल को भेजकर आस पास की दुकानों व ढाबों से पूछताछ करवाई गई। एक ढाबा मालिक ने बताया कि उसके ढाबे में रात्रि करीब नौ बजे दस लोगों ने खाना खाया था। रोटियां सथी अपने साथ लाए थे। रोटियां ऐ पुराने कपड़े में बंधी हुई थी। उन्होंने ढाबे से मीट की दस प्लेटें लेकर खाना खाया था। इस सूचना पर यह स्पष्ट हो गया कि वे व्यक्ति ठेठ गांव के थे। क्योंकि अक्सर गांव के लोग जब शहर में आते हैं तो खाना उइसी तरह कपड़े में बांधकर लाते हैं एवं कहीं पेड़ की छांव में या अन्य स्थान पर बैठकर खाना खा लेते हैं। सब्जी नहीं होती है तो किसी ढाबे से ले लेते हैँ, नहीं तो बिना सब्जी के ही खा लेते हैं। जाने के रास्ते(Way of Return)की ओर बीस-पच्चीस किलोमीटर क्षेत्र के गांवों की मौजेवार (Village Crime Note Books)  निकालकर बदमाशों के रिकॉर्ड की छानबीन शुरू की गई। हालांकि कार्रवाई हवा में तीर चलाने जैसी थी लेकिन जनता के चौबीस घण्टे के अल्टीमेटम के बाद जनाक्रोश को देखते हुए भरपूर प्रयास किया जाना आवश्यक था।
     अब तक की तफतीश व संदिग्धों के बारे में सम्पर्क सूत्रों को बताया गया और तफतीश को आगे बढाया गया।      
 ...लगभग सात बजे एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि ट्रेक्टर पर सवार संदिग्ध लोगों ने जिस ढाबे पर खाना खाया था उसके पास खड़े एक टैम्पो चालक को उनमें से एक व्यक्ति ने गांव संगतपुरा में चलने के लिए कहा था। रात्रि के समय में जिले में उग्रवादी घटना के मद्दे नजर टैम्पो चालक ने वहां जाने से मना कर दिया था। सूचना काफी महत्वपूर्ण थी। गांव संगतपुरा की मौजेवार को निकालकर  बदमाशों की सूची बनाई गई। थोड़ी देर बाद एक सम्पर्क सूत्र ने आकर बताया कि जिस व्यक्ति ने टैम्पो चालक से बात की थी उस संदिग्ध व्यक्ति को उसने भी देखा था। वह व्यक्ति तीन-चार महीने पहले एक समाज विशेष की किसी औरत को लेकर बैठी समाज की पंचायत में एक पक्ष की ओर से बोल रहा था। उसकी रिश्तेदारी गांव संगतपुरा में थी एवं वह गांव 3 टी में सुरजीत सिंह के घर ब्याही हुई थी।
       3  टी की मौजेवार देखने से पता चला कि सुरजीत सिंह का कई नकबजनियों में चालान हुआ था। एक पुलिस टीम ग्राम संगतपुरा में भेजी गई जिसने सुरजीत सिंह के ससुर से सुरजीत सिंह के बारे में पूछताछ की तो उसने कई दिनों से उस गांव में उसका आना नहीं बताया। ग्राम 3 टी में सुरजीत के घर पर उसके ससुर को साथ लेकर पुलिस दल ने रात्रि करीब बारह बजे छापा मारा। बड़ी ऊंची आवाज में डैक बज रहा था। बार-बार दरवाजा खटखटाने के बावजूद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस दल ने चारों ओर से घेरा डालकर पुलिस कमाण्डो को दीवार पर चढाकर अन्दर से मुख्य दरवाजा खोलने के लिए कहा। दरवाजा खुलते ही पांच-सात लोगों के जागने पर पूछा गया तो पुलिस पार्टी को देखकर वे हड़बड़ाकर भागने लगे। उनको रोक कर भागने का कारण पूछा तो सभी के मुंह से निकला गलती हो गई। घर की तलाशी लेने पर दुकानों से चोरी गया पूरा सामान मिल गया एवं आठ व्यक्तियों को पुलिस हिरासत में ले लिया गया। सारे घर की तलाशी ली गई तो उस दिन पिछली रात हुई चोरी के अतिरिक्त  इलाके में हुई आठ-दस अन्य चोरियों का सामान भी उनके घर में मिल गया, जिसे धारा 102 द.प्र.सं. के तहत जब्त किया गया। ट्रेक्टर व ट्रोली के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने करीब एक घंटा पहले घमूड़वाली क्षेत्र में गांव 36 एलएनपी में मोहन सिंह के घर जाना बताया। मोहनसिंह व सुरजीत सिंह आपस में रिश्तेदार हैं।  वायरलैस पर घमूड़वाली थानाधिकारी श्री राजेन्द्र सिंह को सूचना दी गई कि 36 एलएनपी में मोहनसिं के घर जाकर ट्रेक्टर आने का इंतजार करे। करीब एक घंटे बाद ट्रेक्टर वहां पहुंचा तो मोहनसिंह व एक अन्य नकबजन को ट्रेक्टर ट्रोली सहित गिरफ्तार कर लिया गया।
       इस प्रकार कड़ी से कड़ी जोड़कर एक बहुत बड़ी वारदात मात्र अठारह-बीस घंटे में खोलने में  पुलिस को कामयाबी मिली। इस कामयाबी में वापसी का रास्ता (Way of retreat) सिद्धांत काम आया।                

Sunday, May 15, 2011












'दुनिया: पराकाष्ठाएँ' - अपराध

'दुनिया: पराकाष्ठाएँ' श्रृंखला के चौथे भाग में अपराध की पड़ताल की गई है.
दुनिया में प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ लोगों को हिरासत में लिया जाता है. इनमें से लगभग आधे लोग अमरीका, चीन और रूस में क़ैद किए जाते हैं.
'वर्ल्ड प्रिज़न पापुलेशन' ने वर्ष 2009 के लिए जो आंकड़े जारी किए हैं उनके मुताबिक अमरीका में हर एक लाख व्यक्तियों में 756 लोग कैद में हैं, वहीं दुनिया भर में प्रति लाख व्यक्ति 145 लोग क़ैद में है.
दूसरी ओर लेचसेनस्टीन में मात्र सात लोग वर्ष 2008 में क़ैद थे. हालांकि कुछ लोग ऑस्ट्रिया की जेलों में कैद थे फिर भी प्रति लाख महज़ 20 लोग ही क़ैद थे.
संयुक्त राष्ट्र के ‘नशा और अपराध’ कार्यालय 198 देशों में हत्या के आंकड़े पेश करता है जो कि न्यायिक प्रणाली से मिली जानकारी के आधार पर हैं.
मध्य और दक्षिणी अमरीकी देशों में सबसे ज्यादा हत्या की दर है.
हॉंडूराज़ में प्रति लाख व्यक्तियों में 60.9 व्यक्तियों की हत्या की ख़बर है जबकि जमैका में 59.5 है. आईसलैंड और मोनाको में आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2008 में यह दर शून्य थी. इंग्लैंड और वेल्स में 1.2 और अमरीका में 5.2 है.
कंसलटेंसी कंपनी मेरसर के ‘क्वालिटी ऑफ़ लीविंग’ नाम के एक सर्वेक्षण के मुताबिक लक्सेमबर्ग में व्यक्तिगत सुरक्षा का स्तर सबसे अच्छा है और बग़दाद दुनिया में सबसे ज़्यादा असुरक्षित शहर है.
इस सर्वेक्षण में 215 शहरों का विश्लेषण किया गया जिसमें अपराध के स्तर और आंतरिक स्थिरता जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया गया था.

अपराध रिपोर्टिंग का अपराध










एक.दूसरे से आगे रहने की होड़ में समाचार चैनल रिपोर्टिंग के बहुत बुनियादी नियमों और उसूलों की भी परवाह नहीं करते
समाचार चैनलों में अपराध की खबरों को लेकर एक अतिरिक्त उत्साह दिखाई पड़ता है. लेकिन अपराध की खबर शहरी.मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि से हो और उसमें सामाजिक रिश्तों और भावनाओं का एक एंगल भी हो तो चैनलों की दिलचस्पी देखते ही बनती है. ऐसी खबरों में अतिरिक्त दिलचस्पी में कोई बुराई नहीं बशर्ते रिपोर्ट करते हुए पत्रकारिता और रिपोर्टिंग के बुनियादी उसूलों और नियमों का ईमानदारी से पालन हो. 
लेकिन दिक्कत तब शुरू होती है जब चैनल ऐसी खबरों को ना सिर्फ अतिरिक्त रूप से सनसनीखेज बनाकर बल्कि खूब बढ़ा.चढ़ाकर पेश करने लगते हैं. यही नहीं, एक.दूसरे से आगे रहने की होड़ में वे रिपोर्टिंग के बहुत बुनियादी नियमों और उसूलों की भी परवाह नहीं करते. इस प्रक्रिया में उनके अपराध संवाददाता पुलिस के प्रवक्ता बन जाते हैं, वे ऐसी.ऐसी बेसिर.पैर की कहानियां गढ़ने लगते हैं कि तथ्य और गल्प के बीच का भेद मिट जाता है,


ताजा मामला दिल्ली की युवा पत्रकार निरुपमा पाठक की मौत का है. निरुपमा अपने सहपाठी और युवा पत्रकार प्रियभांशु रंजन से प्रेम करती थीं. दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन निरुपमा के घरवालों को यह मंजूर नहीं था. निरुपमा की 29 अप्रैल को अपने गृहनगर तिलैया ;झारखंड में रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी जो बाद में पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ष्हत्या निकली. इसे स्वाभाविक तौर पर आनर किलिंग का मामला माना गया जिसने निरुपमा के सहपाठियोंए सहकर्मियों, शिक्षकों के अलावा बड़ी संख्या में बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और महिला.छात्र संगठनों को आंदोलित कर दिया ;इनमें यह लेखक भी शामिल है.


स्वाभाविक तौर पर अधिकांश चैनलों ने निरुपमा मामले को जोर.शोर से उठाया, हालांकि अधिकांश चैनलों की नींद निरुपमा की मौत के चार दिन बाद तब खुली जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या की बात सामने आने के बाद एनडीटीवी और इंडियन एक्सप्रेस ने इसे प्रमुखता से उठाया. असल में, चैनलों के साथ एक अजीब बात यह भी है कि जब तक किसी खबर को दिल्ली का कोई बड़ा अंग्रेजी अखबार उसके पूरे पर्सपेक्टिव के साथ अपने पहले पन्ने की स्टोरी नहीं बनाता, चैनल आम तौर पर उस खबर को छूते नहीं हैं या आम रूटीन की खबर की तरह ट्रीट करते हैं, लेकिन जैसे ही वह खबर इन अंग्रेजी अख़बारों के पहले पन्ने पर आ जाती है, चैनल बिलकुल हाइपर हो जाते हैं, चैनलों में एक और प्रवृत्ति यह है कि अधिकांश चैनल किसी खबर को पूरा महत्व तब देते हैं जब कोई बड़ा और टीआरपी की दौड़ में आगे चैनल उसे उछालने लग जाता है.


निरुपमा के मामले में भी यह भेड़चाल साफ दिखी. पहले तो चैनलों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट, निरुपमा के पिता की चिट्ठी, निरुपमा के एसएमएस    और प्रियभांशु के बयानों के आधार पर इसे ऑनर किलिंग के मामले की तरह उठाया लेकिन जल्दी ही कई चैनलों के संपादकों ध्रिपोर्टरों की नैतिकता और कई तरह की भावनाएं जोर मारने लगीं, खासकर प्रियभांशु के खिलाफ स्थानीय कोर्ट के निर्देश और पुलिस की ऑफ द रिकॉर्ड ब्रीफिंग ने इन्हें खुलकर खेलने और कहानियां गढ़ने का मौका दे दिया. अपराध संवाददाताओं को और क्या चाहिए था? पूरी एकनिष्ठता के साथ वे प्रियभांशु के खिलाफ पुलिस द्वारा प्रचारित आधे.अधूरे तथ्यों और गढ़ी हुई कहानियों को बिना क्रॉस चेक किए तथ्य की तरह पेश करने लगे.


दरअसल, अपराध संवाददाताओं का यह अपराध नया नहीं है, इक्का.दुक्का अपवादों को छोड़कर चैनलों और अखबारों में क्राइम रिपोर्टिंग पूरी तरह से पुलिस के हाथों का खिलौना बन गई है. सबसे आपत्तिजनक यह है कि अधिकांश क्राइम रिपोर्टर पुलिस से मिली जानकारियों को बिना पुलिस का हवाला दिए अपनी एक्सक्लूसिव खबर की तरह पेश करते हैं.


यह ठीक है कि क्राइम रिपोर्टिंग में पुलिस एक महत्वपूर्ण स्रोत है लेकिन उसी पर पूरी तरह से निर्भर हो जाने का मतलब है अपनी स्वतंत्रता पुलिस के पास गिरवी रख देना, दूसरे यह पत्रकारिता के बुनियादी सिद्धांत यानी हर खबर की कई स्रोतों से पुष्टि या क्रॉस चेकिंग का भी उल्लंघन है. आश्चर्य नहीं कि इस तरह की गल्प रिपोर्टिंग के कारण पुलिस और मीडिया द्वारा अपराधी और आतंकवादी घोषित किए गए कई निर्दोष लोग अंततः कोर्ट से बाइज्जत बरी हो गए, लेकिन अपराध रिपोर्टिंग आज भी अपने अनगिनत अपराधों से सबक सीखने के लिए तैयार नहीं है.






कब मिलेगा अपराध पीड़ितों को हक


भोपाल. राजधानी में हर महीने औसतन डेढ़ हजार अपराध होते हैं। इनमें से 40 फीसदी तो ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ितों को तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत होती है। यदि राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में हुए संशोधन के मुताबिक अपराध क्षतिपूर्ति योजना लागू कर दे, तो इन लोगों को तुरंत राहत मिल सकती है।

 
भोपाल. राजधानी में हर महीने औसतन डेढ़ हजार अपराध होते हैं। इनमें से 40 फीसदी तो ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ितों को तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत होती है। यदि राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में हुए संशोधन के मुताबिक अपराध क्षतिपूर्ति योजना लागू कर दे, तो इन लोगों को तुरंत राहत मिल सकती है।भोपाल. राजधानी में हर महीने औसतन डेढ़ हजार अपराध होते हैं। इनमें से 40 फीसदी तो ऐसे होते हैं, जिनमें पीड़ितों को तत्काल आर्थिक मदद की जरूरत होती है। यदि राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में हुए संशोधन के मुताबिक अपराध क्षतिपूर्ति योजना लागू कर दे, तो इन लोगों को तुरंत राहत मिल सकती है।
संसद ने इस संबंध में कानून भी बना दिया है, लेकिन राज्य सरकार अब भी पीड़ितों का हक दबाए बैठी है। अफसर से लेकर मंत्री तक अपराध पीड़ितों की मदद के सवाल पर गोलमोल जवाब दे रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दंड प्रक्रिया संहिता में हुए संशोधन के बाद राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह केंद्र के साथ मिलकर अपराध पीड़ितों को मदद देने के लिए फंड बनाए, लेकिन प्रदेश सरकार इसमें कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है।

संसद ने सीआरपीसी में संशोधन कर पीड़ितों को तत्काल मदद देने के लिए 357 (ए) धारा जोड़ी है। इसमें कहा गया है कि राज्य सरकारें अपराध पीड़ितों की मदद के लिए एक फंड बनाएगी। राज्य, केंद्र के साथ समन्वय कर यह योजना तैयार करेंगे, लेकिन मध्यप्रदेश में अब तक इस दिशा में कोई काम शुरू नहीं हुआ है।

खास बात यह है कि पुलिस मुख्यालय ने सीआरपीसी में संशोधन की प्रति सभी जिलों के एसपी को भेज तो दी है, लेकिन खुद मुख्यालय को भी नहीं पता कि पीड़ितों को मुआवजा कैसे दिया जाएगा?

इन्हें जानकारी ही नहीं..

फिलहाल इस फाइल का क्या स्टेटस है, यह दिखवाना पड़ेगा। इसके बाद ही इस विषय में कुछ कहना संभव होगा। मुझे अपराध पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दिए जाने के विषय में जानकारी नहीं है।""

नरोत्तम मिश्रा,कानून मंत्री

इस विषय में अभी कुछ बता पाना संभव नहीं है, मैं इस समय मीटिंग में हूं।""

एके मिश्रा,प्रमुख सचिव, विधि विभाग

सीआरपीसी में यह संशोधन हुआ है, लेकिन अब तक स्कीम बनकर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को प्राप्त नहीं हुई है।""

अनिल कुमार चतुर्वेदी, सदस्य सचिव,राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण

क्या करना होगा

गत मार्च में श्रीनगर में देशभर के कानून विशेषज्ञों और पुलिस अफसरों की वर्कशॉप के बाद सभी राज्य सरकारों को आर्थिक क्षतिपूर्ति योजना लागू करने के लिए मसौदा भेजा गया है। इसके मुताबिक- राज्य सरकारें क्षतिपूर्ति देने हेतु विशेष फंड बनाएं। जिला व तहसील स्तर पर अपराध पीड़ित सहायता सेल बनें, जो पीड़ितों को मार्गदर्शन दें। प्रारंभिक तौर पर गंभीर अपराधों के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दी जाए।

सरकार की दिक्कतें

संशोधन के मुताबिक हर वह व्यक्ति पीड़ित होगा, जिसे शारीरिक-आर्थिक हानि होगी। यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि किन अपराधों के पीड़ितों को मुआवजा दिया जाएगा और कितना। सबसे बड़ी दिक्कत है कि मुआवजा देने के लिए सरकार फंड का बंदोबस्त कहां से करेगी?

योजना से फायदा

हत्या या किसी अन्य अपराध में मौत पर परिजन कर सकेंगे मुआवजे का दावा। एक्सीडेंट या किसी हमले में जख्मी होने पर सरकार देगी इलाज का खर्च और मुआवजा। पीड़ित या उसके परिजन को 15 दिन के भीतर मिलेगी मदद।

फिलहाल ये है व्यवस्था

सीआरपीसी की धारा 357 के तहत भी पीड़ितों को मुआवजा पाने का अधिकार है, लेकिन यह मुआवजा तभी मिलता है जब मामले पर सुनवाई के बाद अदालत आरोपी पर जुर्माना तय करती है। इस प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं और पीड़ित को तत्काल मदद नहीं मिल पाती।

एक्सपर्ट कमेंट्स

बनाना होगा 500 करोड़ का फंड

इंडियन सोसायटी ऑफ विक्टिमोलॉजी ने पिछले दिनों श्रीनगर और लखनऊ में हुई वर्कशॉप में इसका मसौदा तैयार किया है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि राज्य सरकारें किस तरह इस स्कीम को लागू करें।

अपराध पीड़ित का यह हक है कि सरकार उसका विस्थापन कराए और उसका जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करे। पश्चिमी देशों में यह व्यवस्था है। हिंदुस्तान में भी अब यह कानून बन गया है। मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में इस व्यवस्था को लागू करने के लिए कम से कम 500 करोड़ रुपए सालाना का फंड बनाना होगा, तब यह कानून कारगर हो पाएगा।""

प्रो.वीवी पांडे,प्रोफेसर,विधि विश्वविद्यालय,लखनऊ

भारतीय न्याय व्यवस्था में अब तक आरोपियों को तो अधिकार मिले हुए हैं, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया में पीड़ितों की भागीदारी अपेक्षाकृत कम है। दुनिया भर में पीड़ितों को उनके अधिकार दिलाए जाने का अभियान चलाया गया और इसके बाद 1985 में विएना उद्घोषणा में पीड़ितों को क्षतिपूर्ति और विस्थापन को भारत सहित दुनिया के अधिकांश देशों ने रजामंदी दी।

भारत में इस दिशा में काम शुरू हुआ और सीआरपीसी में संशोधन के जरिए पीड़ितों को क्षतिपूर्ति दिए जाने के लिए धारा 357 (ए) में प्रावधान किया गया। आंध्रप्रदेश, दिल्ली, तमिलनाडु में पीड़ितों को अधिकार दिए जाने के लिए राज्य सरकार और गैर सरकारी संगठनों ने मिलकर इस दिशा में काम करना शुरू किया है। फिलहाल बड़ी अड़चन यह है कि अभी जितना कानून है, उसका तो पूरी ईमानदारी से पालन सुनिश्चित हो।""

प्रो. जीएस वाजपेयी, एनएलआईयू

(इंडियन सोसायटी ऑफ विक्टिमोलॉजी के सदस्य हैं, और पीड़ितों को अधिकार दिलाए जाने के लिए बीते डेढ़ दशक से काम कर रहे हैं।)

WD
मौसम और आपराधिक घटनाओं के बीच क्या कोई संबंध है? क्या इस तरह की जानकारी अपराधों को रोकने और अपराधियों को पकड़ने के काम आ सकती है? जर्मनी में एक अपराध विज्ञानी ने इस संबंध में एक दिलचस्प प्रयोग किया है। 

1748 में फ्रांस के बारों मोंटेस्क्यू ने कहा था कि कानूनों को मौसम के हिसाब से बनाया जाना चाहिए क्योंकि गर्मी या सर्दी का असर अपराधियों पर पड़ सकता है। क्रिमिनॉलजिस्ट यानी अपराध और उसके पीछे की मानसिकता को जांच रहे मनोवैज्ञानिक आंद्रेआस लोमायर कहते हैं कि मौसम और जुर्म के बीच का रिश्ता पहले भी लोगों ने समझने की कोशिश की है। हैम्बर्ग की पुलिस के साथ काम कर रहे लोमायर अब हर दिन मौसम की जानकारी मंगवाते हैं।

वैसे तो पुलिस के एक थाने को हमेशा दूसरे थाने के मौसम की जानकारी रखनी पड़ती है ताकि आपात स्थिति में पता लगाया जा सके कि किसी दूसरी जगह के पुलिस अधिकारी आने की हालत में हैं भी या नहीं। लेकिन इसके बावजूद अपराध और मौसम के बीच का रिश्ता साफ नहीं हो पाया है।

लोमायर ने पुलिस के आपराधिक आंकड़ों को मौसम की सूचना के साथ मिलाकर देखा। वह कहते हैं कि जब आप मौसम के बारे में जानकारी को दिन में हर एक घंटे के लिए बांटते हैं वह भी पिछले 20 सालों के लिए तो आपको तीन करोड़ 60 हजार जानकारियां मिलती हैं। इसके अलावा एक लाख 75,000 छोटी जानकारियां जो पुलिस आंकड़ों से मिलती है।

कैसे पता चला : अपने सहयोगियों के साथ मिलकर लोमायर ने 20 लाख जानकारियां अलग की और हर एक अपराध के बारे में तथ्यों की जांच की। उससे पता चला कि ऐसा कोई मौसम नहीं है जो हमेशा अपराध को बढ़ावा देता हो, लेकिन अपराध भी दो प्रकार के होते हैं। एक वो जो मौसम से प्रभावित नहीं होते जैसे चोरी, दुकान पर डाका डालना, जहर देना, धोखाधड़ी और गाड़ी चोरी करना।

लेकिन कुछ ऐसे जुर्म होते हैं जो मौसम की वजह से बढ़ जाते हैं, जैसे बलात्कार। इस सिलसिले में लोमायर कहते हैं कि गर्मी जितनी बढ़ती है, इस तरह के जुर्म ज्यादा होते हैं। और आंकड़ों से भी यही साबित होता है। एक डिग्री सेल्सियस के बढ़ने के साथ साथ जुर्म रोजाना 0.7 गुना बढ़ते हैं।

अगर हफ्ते में धूप वाले दिन को अलग देखा जाए तो आंकड़े और साफ होंगे। लोमायर का कहना है कि अगस्त में अगर किसी शनिवार को ज्यादा गर्मी होती है तो उस दिन 82 बर्बर अपराधों के होने की संभावना है। मार्च में एक ठंडे दिन में यह आकंड़ा सिर्फ 51 के आस पास रहता है।

और मजेदार बात यह है कि एक धूप वाले दिन में साइकिलों की चोरी भी ज्यादा होती है। आंकड़े देते हुए वे कहते हैं कि मार्च के एक बारिश वाले रविवार में 19 साइकलें चोरी हुई थीं लेकिन जून के एक मंगलवार में 63 ऐसे किस्से हुए।

सूरज डूबा और चोर निकले : साथ ही दिन के छोटे होने के साथ रात का अंधेरा भी जुर्म को बढ़ावा देता है। लोमायर के आंकड़े कहते हैं कि एक घंटा ज्यादा अंधेरा होने से एक अपराध ज्यादा होगा। लेकिन मौसम ठंडा होते ही यह आंकड़ा कम भी हो जाएगा। जब दिन बिलकुल छोटे और ठंडे हो जाएंगे तो इस रिश्ते के बारे में बोलना कठिन हो जाएगा। जब बर्फ पड़ती है तो हर दिन छह अपराध कम होते हैं।

मतलब साफ है, चोरों को गर्मी और अंधेरा पसंद है। इस साल फरवरी में हैम्बर्ग के लोग शीत लहर से कांप रहे थे। जाहिर है ऐसे में चोर भी अपने घरों से निकलते कतरा रहे थे और पूरे शहर में पुलिस ने केवल दो अपराध दर्ज किए, जिनमें लोगों ने गाड़ी की रियर व्यू मिरर चुराने की कोशिश की।

अमेरिकी राज्य टेनेसी के शहर मेम्फिस में भी पुलिस कंप्यूटर के जरिए मौसम और अपराध के रिश्ते को खोज रही है। एक खास सॉफ्टवेयर, क्रश के जरिए चोरी के दिन को लेकर अपराधिक आंकड़ें, समारोह, आर्थिक आंकड़ों और मौसम के प्रभाव के बारे में पता लगाया जा सकता है। 2005 से वहां की पुलिस यह सॉफ्टवेयर इस्तेमाल कर रही है। उसके बाद मेम्फिस में अपराध 30 फीसदी कम हो गए हैं।

रिपोर्ट: डॉयचे वेले/एम जी

THE CRIME IN INDIA


भारत में अपराध

राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो द्वारा निकाले जाने वाला यह सबसे पुराना एवं प्रतिष्ठित प्रकाशन है । रिपोर्ट के लिए राज्‍य अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो (रा.अ.रि.ब्‍यू.) द्वारा जिला अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो(जि.अ.रि.ब्‍यू.) से डाटा संग्रह किया जाता है एवं संदर्भ के अंतर्गत वर्ष के अंत में राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो को भेजा जाता है । बड़े शहरो (अंतिम जनगणना के आधार पर १० लाख या उससे अधिक जनसंख्‍या वाले शहरो) से अलग से डाटा संग्रह किया जाता है । कुछ आई.पी.सी. मदों पर जिला वार अलग से डाटा संग्रह एवं प्रकाशित किया जाता है । 'भारत में अपराध' का पहला अंक वर्ष १९५३ सें संबंधित है एवं रिपोर्ट का नवीनतम अंक वर्ष २००८ से संबंधित है ।

कार्य क्षेत्र:

यह रिपोर्ट निम्‍नलिखित पर विस्‍तृत जानकारी रखती है:
१.     पंजीकृत मामले एवं उनका निपटान एवं
२.     गिरफ्तार व्‍यक्ति एवं उनका निपटान
भारतीय दंड संहिता एवं विशेष तथा स्‍थानीय कानून के मुख्‍य मदों के अंतर्गत । रिपोर्ट में इन अपराध शीर्षों के अंतर्गत गिरफ्तार व्‍यक्तियों का आयु ग्रुप वार एवं लिंग वार ब्‍यौरा भी उपलब्‍ध है । इस रिपोर्ट में समाज के कुछ असुरिक्षत सेक्शनों-महिलाओं,बच्चों,अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध हुए अपराध पर भी एक अध्‍याय है । उपर्युक्‍त अपराध आकडों को सुचित्र/नक्शे के प्रारूप, सारणी के प्रारूप एवं मानचित्र के प्रारूप में प्रस्‍तुत किया गया है ।

मुख्‍य क्षेत्र:

पुलिस सामर्थ्य, व्‍यय एवं अवसंरचना के लिए एक पूर्ण अध्‍याय समर्पित किया गया है । इसी प्रकार से पुलिस दुर्घटना एवं पुलिस गोलीबारी एवं दुर्घटना पर सूचना अलग अध्‍यायों में दी गई है । समय के अनुसार आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे है। अतः साईबर अपराध एवं मानव व्यापार पर सूचना को अलग अध्‍यायों में दिया गया है । आर्थिक अपराध, दोबारा अपराध करने के अभ्‍यास एवं रेलवे में अपराध को अलग अध्‍यायों में दिया गया है । अपहरण एवं व्यपहरण की कुल जनसंख्‍या के संबंध में महिलायें एवं लड़कियों तथा बच्‍चों की सूचना अलग से दी गई है ।

डाटा अनुसंधान करने एवं निर्णय लेने में:

भारत सरकार के पास उपर्युक्‍त विषय पर अत्‍यंत विस्‍तृत, डाटा बैंक केवल इसी रिपोर्ट में उपलब्‍ध है। इस रिपोर्ट में विहित डाटा नीति निर्माताओं, एन.जी.ओ., अनुसंधानकर्त्‍ताओं एवं आम जनाता द्वारा बड़े तौर प्रयोग किया जाता है । रिपोर्ट में विहित सूचना की व्यापकता, बढ़ते उपयोग, विभिन्‍न स्‍टाकहोल्‍डर की निर्भरता को ध्‍यान में रखते हुए हमने, अपने खुद के प्रयासों से १९५३ से २००८ तक की रिपोर्ट के सभी अंकों को डिजिटाईज किया है एवं इसे हमारी वेबसाइट पर उपलब्‍ध कराया है ।

सुझाव एवं नए क्रियाकलाप

यद्यपि हमारी उपल्बिधयां हमें गौरवांवित करती है, परन्तु वे हमें संतुष्‍ट नहीं करती है । रिपोर्ट के प्रस्‍तुतीकरण में कई वर्षों से लगातार सुधार होता रहा है । अतः अभी हाल ही में रिपोर्ट में रेखाचित्र एवं मानचित्र की काफी अधिक संख्‍या को शामिल किया गया है । हम स्‍टेकहोल्‍डर के लिए इसे अधिक उपयोगी बनाने के लिए रिपोर्ट की विषय सूची एवं प्रस्‍तुतीकरण में सुधार के लिए अत्‍यंत आभारी होंगे । हम उपयोगकर्त्‍ताओं से हमारे कार्य को और अधिक उत्‍कृष्‍ट बनाने के लिए सुझावो का स्‍वागत करते हैं ।