दिनांक 24 नवम्बर, 1995 को प्रात: छ: बजे मेरे आवास के टेलीफोन की घंटी बजी। टेलीफोन उठाते ही दूसरी ओर से आवाज आई, सर! मैं प्रह्लाद सिंह, उप निरीक्षक, थाना कोतवाली (झुंझुनूं) से अर्ज कर रहा हूं। बगड़ की ओर जाने वाली मुख्य सड़क पर बीड़ (घना जंगल) के पास एक मारूति कार पूर्णतया जली अवस्था में पड़ी है तथा उसमें दो नर कंकाल भी जली अवस्था में हैं। ऐसा लगता है कि घटना रात के करीब बारह-एक बजे की होगी। मैं दो सिपाही मौके पर छोड़कर आपको सूचना देने आया हूं।
आप पुन: घटनास्थल पर पहुंचो। मैं अभी रवाना हो रहा हूं। मौका डिस्टर्ब नहीं होना चाहिए। कुछ नहीं बचा। अब तो यह भी पता नहीं चलेगा कि गाड़ी किसकी थी? नम्बर यह निर्देश देकर मैं रवाना हुआ तथा आधा घंटे में घटनास्थल पर पहुंच गया। वहां दृश्य बड़ा भयावह था। एक मारूति कार बबूल के पेड़ से टकराकर सम्पूर्ण रूप से जली अवस्था में पड़ी थी। उसमें दो नर कंकान पूर्णतया जली अवस्था में फंसे पड़े थे। एक नर कंकाल आगे स्टेयरिंग के पास था जो गाड़ी के सामने की टक्कर से पिचकने के बाद स्टेयरिंग व सीट के बीच में फंसा हुआ था। दूसरा नर कंकाल पिछली सीट पर था जिसका दाहिना हाथ मुड़कर दरवाजे पर था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि गाड़ी में आग लगने के बाद उसने दरवाजा खोलने का असफल प्रयास किया होगा। गाड़ी पूर्णतया जलकर ठंडी हो चुकी थी। केवल टायरों के निचली ओर से थोड़ा धुंआ उठ रहाथा। घटना लगभग ग्यारह-बारह बजे रात्रि के बीच की रही होगी । गाड़ी के नम्बर, रंग, सीट का रंग इत्यादि कुछ भी पहचानने योग्य नहीं थे।
घटना देखने के बाद मन सिहर उठा। दो जिन्दा व्यक्ति किस प्रकार बचाव के लिए पुकार पुकार कर जले होंगे, सोचकर रोंगटे खड़े हो गए। घटना के छ: घंटे बाद तक किसी भी व्यक्ति ने न तो पुलिस को खबर दी थी और न ही उन्हें बचाने की कोशिश की थी। बड़ी व्यस्त सड़क होने के कारण अनेक वाहन वहां से गुजरे होंगे। जो जले हैं, उनकी चीखें भी सुनी होंगी लेकिन किसी ने उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की। मैं सोच रहा था कि क्या मानवता मर गई है? क्या वास्तव में कलयुग आ गया है? जहां किसी को अपने स्वार्थपूर्ति के सिवाय कोई काम नहीं है। लगता है वे दिन बीत गए जब पड़ोसी के दर्द में उसका पड़ोसी पूरी तरह सिरहाने बैठ उसके दुख-दर्द में शामिल हुआ करता था। क्या होगा इस स्वार्थी दुनिया का?
सर कुछ नहीं बचा। अब तो यह भी पता नहीं चलेगा कि गाड़ी किसकी थी? क्या नम्बर था और कौन थे ये लोग? यह बात थानाधिकारी श्री सज्जनसिंह, उपनिरीक्षक ने कही जो मुझसे पहले घटनास्थल पर पहुंच चुके थे। मैंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया। बबूल के पेड़ की छाल उतरी हुई थी। सड़क से उस पेड़ की ओर गाड़ी के आने के टायरों के निशान मौजूद थे। गाड़ी की फ्रंट स्क्रीन के टूटे हुए टुकड़े बबूल के पेड़ के पास बिखरे पड़े थे। वहीं पर गाड़ी की लाईट का एक टुकड़ा भी पड़ा था। घटनाक्रम दुर्घटना का ही था। अत: किसी द्वारा गाड़ी में आग लगाने का मामला न मानकर सीधा दुर्घटना मानकर तफतीश आगे बढाई गई। मैंने सभी पुलिसकर्मियों को घटनास्थल के आठ-दस मीटर की दूरी तक चारों ओर बारीकी से तलाश करने के आदेश दिए। अनुमान था कि अक्कर के बाद काँच या अन्य चीजें छिटक कर दूर जाकर जरूर गिरी होंगी। सभी ने बारीकी से तलाशी की। तलाशी रंग लाई। एक सिपाही ने प्लास्टिक का एक छोटा टुकड़ा हाथ में लेकर मुझे दिखाया जो संभवतया कार के मडगार्ड का टुकड़ा था। वह ग्रे कलर का था। इससे अंदाज लगाया गया कि कार का रंग भी ग्रे ही रहा होगा।
मैं भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर रहा था। अचानक मुझे स्टीकर में लिपटा काँच का टुकड़ा मिला, जिसे उठाकर देखा गया तो उस पर अंगेजी में टांबी एंड कम्पनी लिखा था। पुन: तलाश पर एक अन्य टुकड़ा मिला जिस पर दिनांक 19.8.95 लिखी थी। मुझे लगा कि यदि इस प्रकार के और टुकड़े मिल जाएं तो उन्हें जाड़कर तफतीश में कुछ आगे बढा जा सकता है। अचानक बबूल के पेड़ के पास घास में पड़े एक ऐसे ही टुकड़े पर मेरी नजर पड़ी। मैंने उसे उठाकर देखा ता उस पर एच.पी.डीलर्स एवं दूरभाष नं. 322492 लिखा था। इसी बीच श्री सज्जनसिंह थानाधिकारी, सदर (झुंझुनूं) को भी एक छोटा सा टुकडंा मिला जिस पर सर्विस्ड बाई जी.जी. लिखा था। हमें मौके पर इस प्रकार के पाँच टुकड़े मिले। सभी को जोड़कर देखा गया एवं पढा गया। यह अंग्रेजी में लिखा एक पूरी स्टीकर बन गया था। यह संभवत: कार के फ्रंट स्क्रीन पर चिपका हुआ होगा। स्टीकर के टुकड़े टक्कर लगने से टूटकर काफी दूर में फैल गए थे। सभी टुकड़ों को जोड़कर पढा गया तो उस पर सर्विस्ड बाई जी.जी.टांबी एंड कम्पनी, एच.पी.डीलर्स, झोटवाड़ा रोड, जयपुर 6, दूरभाष 322492 सर्विस दिनांक 19.8.95 लिखा था।
मुख्यालय झुंझुनूं आकर जयपुर के दूरभाष 322492 पर अपना परिचय देते हुए बात की और पूछा गया कि दिनांक 19.8.95 को जिस ग्रे रंग की मारूति की सर्विस आप द्वारा की गई है, उसका नम्बर क्या है? उसका मालिक कौन है? दिनांक 23.11.95 को गाड़ी किसके पास थी? पता कर तुरन्त बताएं। करीब पन्द्रह मिनट बाद पुन: बात की गई तो बताया गया कि यह गाड़ी मारूति नं. आर.जे. 14- 3610 है तथा सत्यनारायण जांगिड़, विश्वकर्मा जयपुर के नाम से रजिस्टर्ड हैं। जिनके टेलिफोन नं. 330133 व 330529 हैं।
.
उक्त टेलिफोन पर बात की गई तो बताया गया कि यह कार सत्यनारायण जांगिड़ की ही है। दिनांक 23.11.95 को उनके लड़के अनिल तथा दामाद सुभाष जांगिड़ उक्त कार को झुंझुनूं लेकर गए थे तथा अभी तक वापस नहीं आए हैें। सुभाष झुंझुनूं का रहने वाला है और कल उसके लड़के का जलवा (कुआ पूजन) था, उसमें शामिल होने के लिए दोनों साला-बहनोई साथ ही गए थे। उन्हें जब दुर्घटना के बारे में बताया गया तो सत्यनारायण जांगिड़ तुरंत मौके पर रवाना हो गए।
कार किसकी थी, कार में कौन-कौन थे, इस बात का पता उस स्टीकर के टुकड़ों से चल गया था। मगर कार में जो नर कंकाल ड्राईविंग सीट पर फंसा पड़ा था, वह किसका था और जो कंकाल कार की पिछली सीट पर था वह किसका था, इस बात का पता लगाना बड़ा कठिन था। दोनों नर कंकाल जलकर राख व टुकड़ों में बदल चुके थे। चेहरे की हड्डियां जले हुए मानव होने का आभास मात्र करा रही थी। इनमें से कौन किस माँ का लाल है ओर कौन किस माँग का सिन्दूर? पता लगाना बड़ा कठिन हो रहा था। दोनों लाशें इस कदर जल चुकी थी कि उन्हें पोस्टमार्टम हेतु मुख्यालय झुंझुनूं ले जाना भी सम्भव नहीं था। अत: मैंने थानाधिकारी श्री सज्जनसिंह को निर्देश दिए कि वह मेडिकल ज्यूरिस्ट को मौके पर ही बुलाकर पोस्टमार्टम करवा देवे।
घटनास्थल पर जांच-पड़ताल चल ही रही थी कि एक आदमी घबराया हुआ आया। उसने अपना नाम नवरत्न पुत्र मोहनलाल जांगिड़, निवासी सूरजगढ होना बताया। उसने कहा कि वह चिड़ावा में खेतड़ी रोड पर मोटर बाइंडिंग का काम करता है। उसको आज सुबह चिड़ावा के झंडीप्रसाद परमेश्वरलाल पैट्रोल पम्प के सेलसमेन ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि रात को उसका साला सुभाष मारूति कार नं. आर.जे. 14- 3610 को लेकर करीब बारह बजे पेट्रोल पम्प पर आया था ओर उन्नीस लीटर पैट्रोल लेकर गया था। कार को सुभाष चला रहा था और एक आदमी पीछे की सीट पर सो रहा था। सुभाष ने बताया कि कार की वायरिंग स्पार्क कर रही थी। उसने यह भी बताया कि आज झुंझुनूं रबीड़ में एक मारूति कार जली हुई सड़क पर पड़ी है, संभव है वह वही कार हो। उसके साले सुभाष के घर 27-10-95 को लड़का हुआ था। कल दिनांक 23.11.95 को लड़के का कुआ पूजन था। उसकी पत्नी भी उसमें भाग लेने गई थी। उसने अपने ससुर से फोन पर बात की तो बताया कि सुभाष व अनिल दोनों कार से चिड़ावा किसी काम से गए थे। अभी तक वापस नहीं आए हैं। कल शाम को चिड़ावा से टेलिफोन से झुंझुनूं बात की थी। उन्होनें कहा था कि वे आठ-नौ बजे तक आ जाएंगे। उसने चिड़ावा में पता किया तो दोनों का रात को देर से चिड़ावा से झुंझुनूं के लिए रवाना होना बताया गया। अत: वह देखने आया है। ओमप्रकाश शर्मा, सेल्समेन ने भी नवरत्न की बात की पुष्टि की।
सुभाष झुंझुनूं का रहने वाला है, इस बात का पता चलते ही प्रभात टाकीज के पास स्थित मकान पर पहुंचकर उसके पिता श्री लक्ष्मीनारायण, सुभाष की पत्नी श्रीमती सरोज, अनिल की पत्नी श्रीमती कृष्णा से तफतीश की गई। सम्पूर्ण घटनाक्रम इस प्रकार सामने आया-
दिनांक 23.11.95 को दिन में झुंझुनूं में सुभाष के लड़के का जलवा (कुआं पूजन) था। इसमें शामिल होने के लिए सुभाष स्वयं तथा उसका साला अनिल, सपरिवार अनिल के पिता श्री सत्यनारायण की मारूति कार नं. आर.जे. 14-3610 से झुंझुनूं आए थे। दिन में सभी ने साथ खाना खाया था। करीब दो बजे सुभाष तथा अनिल दोनों चिड़ावा इझडस्ट्रीयल एरिया में अपनी बेची हुई ग्रेनाइट कटर मशीनों को देखने गए थे। अनिल के पिता श्री सत्यनारायण जांगिड़ जो मूल रूप से बिसाऊ के रहने वाले हैं तथा जयपुर विश्वकर्मा इण्डस्ट्रियल एरिया रोड नं. 9 ए पर राजस्थान प्रोसेस ज्योति, मेटल इंजिनीयर्स एवं जनरल इंजिनीयरिंग कार्पोेशन के नाम से ग्रेनाइट पत्थर की कटाई तथा पिसाई की मशीन बनाते हैं। सुभाष ने ज्योति मेटल इंजिनीयरिंग वर्कशॉप के नाम से फैक्ट्री खोल रखी है। चिड़ावा पहुंचकर दोनों ने जोशी स्टोन एंड आयरन स्टोन फैक्ट्री , स्टेशन रोड, चिड़ावा रपर अपनी मशीनें चैक की तथा नई मशीनों की फाउंडेशन चैक की। उसके बाद चिड़ावा की दूसरी फैक्ट्रियों को चैक करने के बाद रात्रि पाल होटल, सिंघाना में अपने मित्रों के साथ खाना खाकर चिड़ावा आ गए। चिड़ावा में अपनग मित्रों को छोड़कर पैट्रोल पम्प से पैट्रोल लेकर झुंझुनूं के लिए रात्रि करीब सवा बारह बजे रवाना हो गए। सुभाष गाड़ी चला रहा था तथा अनिल पिछली सीट पर सो रहा था। गाड़ी की वायरिंग स्पार्क कर रही थी, इस कारण मित्रों ने रात्रि चिड़ावा में ही रूकने के लिए कहा था, लेकिन दोनों नहीं रूके और झुंझुनूं रवाना हो गए थे। झुंझुनूं बीड़ में पहुंचने पर गाड़ी की वायरिंग के पुन: स्पार्क करने पर चालक सुभाष का ध्यान जैसे ही सामने सड़क पर से हटा होगा, गाड़ी करीब आठ-दस मीटर सड़क के दाहिनी ओर खड़े बबूल के पेड़ से टकरा गई होगी। भयंकर टक्कर के कारण पहले से ही स्पार्क कर रही वायरिंग के कारण पैट्रोल ने आग पकड़ ली होगी और गाड़ी चला रहा सुभाष जांगिड़ तथा कार की पिछली सीट पर सो रहा अनिल दोनों जिन्दा जलकर मर गए होंगे। दोनों लाशों का मौके पर पोस्टमार्टम करवाया जाकर उनके वारिशान को सुपुर्द कर दी गई।
घटनास्थल के बारीकी से निरीक्षण के बाद छोटे से सुराग से इतना महत्वपूर्ण मुद्दा हल हो सका। जले हुए नर कंकाल, जिनकी शिनाख्त नहीं की थी, फिर भी कौन सा नर कंकाल किसका है, यह पता चल गया तथा उनके वारिशों को सम्भलवा दिया गया। मात्र दो घंटे में सम्पूर्ण घटना का खुलासा हुआ।
No comments:
Post a Comment