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हमेशा देश-सेवा और जनसेवा की भावनाओं के वशीभूत होकर कार्य किया है। विभिन्न संस्थाओं और सरकारी बोर्डों, समितियों में रहकर भी जनहित के कामों पर ध्यान दिया है। हरकदम पर पाया है कि भ्रष्टाचार इस देश को भीतर ही भीतर खोखला करता जा रहा है। स्वार्थ के सामने राष्ट्रहित गौण होता जा रहा है। इस टसि को लेकर कलम की ताकत की कलात्मक अभिव्यक्ति के रूप में सन 2003 में कलम कला पाक्षिक अखबार का प्रकाशन आरम्भ किया, जो अनवरत चल रहा है। अब ब्लॉगिंग के जरिए देश भर के नेक और ईमानदार लोगों की टीम बनाकर भ्रष्टाचार मिटाना चाहती हूं।

Wednesday, May 11, 2011

फिर से हो उत्तर प्रदेश के दो टुकड़े


    बिजनौर, मुजफ्फरनगर और सराहनपुर को एक राजनीतिक दल द्वारा उत्तराखण्ड में मिलाने की मांग की जा रही है। यह मांग सर्वथा अनुचित है। उत्तराखण्ड वासी कभी भी उत्तरप्रदेश वासियों को ग्रहण नहीं करेंगे और एक अलगाववाद की स्थिति हमेशा बनी रहेगी। राजनीतिक दलों को बगैर सोचे-समझे इस प्रकार की मांग नहीं उठानी चाहिए। बिजनौर के एक या दो अधिवक्ता उत्तराखण्ड नैनीताल जाकर उच्च न्यायालय में कार्य कर चुके, उन्होंने जो अनुभव बताए उससे स्प्ष्ट है कि उत्तराखण्ड और उत्तरप्रदेश के निवासियों में एकात्मता नहीं हो सकती। अत: इस प्रकार की मांग करने से और जनता का समय नष्ट करने से, जनता को दिग्भ्रमित करने से कोई लाभ नहीं है। होना यह चाहिए कि  उत्तरप्रदेश को दो भागों में बांटने की बात समस्त राजनीतिक दल मिलकर करें, तो सभी समस्याओं का हल हो सकता है। अधिवक्तागण बहुत समय से पश्चिमी उत्तरप्रदेश में उच्च न्यायालय की खण्डपीठ की स्थापना की मांग कर रहे हैं, जो कभी  भी मूर्त रूप नहीं ले सकती। होना यह चाहिए कि उत्तरप्रदेश को दो भागों में बांट दिया जावे और यदि सब मिलकर जोर लगाएं तो यह असम्भव नहीं है। दो हिस्सों में बटने  से पश्चिमी उत्तरप्रदेश में उच्च न्यायालय की स्थापना भी हो जाएगी और दोनों भागों में विकास भी अधिक होगा। जैसे कि पंजाब के ओर आसाम के बटवारे से सुनिश्चित है। छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटने से कोई हानि नहीं है। उत्तर प्रदेश अभी भी इतना बड़ा है कि उसकी देखभाल सम्भव नहीं होती। एक वर्ष में समस्त प्रदेश का कोई भी मंत्री या मुख्यमंत्री दौरा नहीं कर सकते। प्रांतीय शीर्ष अधिकारी  भी पूरा नियन्त्रण नहीं रख पाते। सड़कों की जा स्थिति वर्तमान में उत्तरप्रदेश में है, वह भी ठीक हो सकती है, जिस प्रकार से पंजाब और हरियाणा में है। लम्बित वादों का निस्तारण भी शीघ्रतम हो सकता है।
       अत: इधर-उधर की बातें न करके केवल मात्र उत्तरप्रदेश को दो भागों में बांटने की मांग की जानी चाहिए और अपना-अपना स्वत्व भूलकर और निजत्व को त्याग कर ये जनहित में मांग करनी चाहिए। जब समवेत स्वर  से मांग उठेगी तो वह अवश्य ही पूरी होगी।
      पश्चिमी उत्तरप्रदेश में उच्च न्यायालय की खण्डपीठ की मांग यदा-कदा उठती रहती है और टांय-टांय फिस्स हो जाती है। केवल कुछ लोग संघर्ष समिति  के अध्यक्ष और सचिव बनकर अपनी पहुंच सत्ता तक बना लेते हैं और अपना काम निकाल कर फिर ठण्डे पड़ जाते हैं। आज तक हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ता पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों को खण्डपीठ में शामिल नहीं करा सके। कैसी विडम्बना है कि बिजनौर, मुजफ्फरनगर, सराहनपुर के जिले उच्च न्यायालय की इलाहाबाद पीठ के अधीन है, जबकि जाना लखनऊ होकर पड़ता है। इन जिलों को लखनऊ खण्डपीठ से जोड़ दिया जावे तो  जनता को भी सुविधा रहे और कार्य भी शीघ्र निस्तारित हो। इसके विपरीत इलाहाबाद के पास के जिले लखनऊ बैंच में सम्मिलित है, जबकि उन्हें इलाहाबाद बैंच में सम्मिलित किया जाना चाहिए। यदि अधिवक्तागण इतना ही परिवर्तन करा लेते तो भी उनकी आंशिक सफलता होती।-HITESH KUMAR SHARMA, ADVOCATE, BIJNOUR

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